शब्दोदधि में डूब जाओ
मुक्ता-से शब्द ढूँढ़ लाओ
ये घिसे-पिटे
उबाऊ चुभते
रसीले शब्दों ने
मन खिन्न किया है
कानों में गूँजते
आँखों से गुज़रते
अर्धमूर्छित शब्द
औंधे मुँह गिरती
कविता के अलंकरण हैं
शब्द अर्थ पाएँगे
जब संवेदना निकलेगी
सड़क पर महसूसने
उन पलायन करते
मज़दूरों की वेदना
जो बची-खुची गृहस्थी को
पोटली में बाँधे
सर पर लादे
और अबोध बच्चों को
काँधों पर लादे
निढाल भार्या
बूढ़ी माँ का हाथ थामे
भूखे-प्यासे
बिन पैसे
महानगरों से
निकल पड़े
लॉक डाउन में
पुलिस अत्याचार को सहते
अपने घरों की ओर
पैदल लम्बे अनिश्चित सफ़र पर
कुछ सफ़र पूरा होते-होते
निकल गये
किसी और दुनिया के सफ़र पर।
© रवीन्द्र सिंह यादव
मुक्ता-से शब्द ढूँढ़ लाओ
ये घिसे-पिटे
उबाऊ चुभते
रसीले शब्दों ने
मन खिन्न किया है
कानों में गूँजते
आँखों से गुज़रते
अर्धमूर्छित शब्द
औंधे मुँह गिरती
कविता के अलंकरण हैं
शब्द अर्थ पाएँगे
जब संवेदना निकलेगी
सड़क पर महसूसने
उन पलायन करते
मज़दूरों की वेदना
जो बची-खुची गृहस्थी को
पोटली में बाँधे
सर पर लादे
और अबोध बच्चों को
काँधों पर लादे
निढाल भार्या
बूढ़ी माँ का हाथ थामे
भूखे-प्यासे
बिन पैसे
महानगरों से
निकल पड़े
लॉक डाउन में
पुलिस अत्याचार को सहते
अपने घरों की ओर
पैदल लम्बे अनिश्चित सफ़र पर
कुछ सफ़र पूरा होते-होते
निकल गये
किसी और दुनिया के सफ़र पर।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आज के कठिन दौर का बहुत सटीक चित्रण. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (10-04-2020) को "तप रे मधुर-मधुर मन!" (चर्चा अंक-3667) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!रविन्द्र जी ,बेहतरीन !
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