करोना काल के
विवश साक्षी हैं हम,
ऐतिहासिक तारीख़ के साथ
याद किए जाने के
महत्त्वाकाँक्षी हैं हम।
दर्ज हो रहे हैं
क़िस्से-दर-क़िस्से
मानवता के विस्तार
और संवेदनाविहीन व्यवहार के
समय की स्लेट पर
लिखी जा रही है इबारत,
पूँजी के आसपास
टिकी है
सरकारी
ग़ैर-सरकारी सोच
खिड़कियाँ बनाना
भूल गए हैं हम
खड़ी कर दी है
भावशून्य इमारत
जिसमें सब दिखेंगे
हाथ धोते हुए,
चेहरे पर मास्क का
अनचाहा भार ढोते हुए।
जिसके पृथक-पृथक तल में
अपने-अपने कंधों पर
लिए खड़े हैं हम अपनी लाशें,
विद्वता को नकार
भीड़ में मुँह छिपाकर
हम गिन रहे हैं
अपनी बची-खुचीं सांसें।
© रवीन्द्र सिंह यादव
विवश साक्षी हैं हम,
ऐतिहासिक तारीख़ के साथ
याद किए जाने के
महत्त्वाकाँक्षी हैं हम।
दर्ज हो रहे हैं
क़िस्से-दर-क़िस्से
मानवता के विस्तार
और संवेदनाविहीन व्यवहार के
समय की स्लेट पर
लिखी जा रही है इबारत,
पूँजी के आसपास
टिकी है
सरकारी
ग़ैर-सरकारी सोच
खिड़कियाँ बनाना
भूल गए हैं हम
खड़ी कर दी है
भावशून्य इमारत
जिसमें सब दिखेंगे
हाथ धोते हुए,
चेहरे पर मास्क का
अनचाहा भार ढोते हुए।
जिसके पृथक-पृथक तल में
अपने-अपने कंधों पर
लिए खड़े हैं हम अपनी लाशें,
विद्वता को नकार
भीड़ में मुँह छिपाकर
हम गिन रहे हैं
अपनी बची-खुचीं सांसें।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१८-०४-२०२०) को 'समय की स्लेट पर ' (चर्चा अंक-३६७५) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
ऐतिहासिक तारीख़ के साथ
जवाब देंहटाएंयाद किए जाने के
महत्त्वाकाँक्षी हैं हम
–महत्त्वाकाँक्षी होने ने विवश किया कीमत चुकाने के लिए
सुंदर चित्रण
वाह!रविन्द्र जी ,बहुत खूब!समय की स्लेट पर लिखी इबारतें ,पढी जाएगी इतिहास में..।
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंविद्वता को नकार
जवाब देंहटाएंभीड़ में मुँह छिपाकर
हम गिन रहे हैं
अपनी बची-खुचीं सांसें।
सही कहा रविन्द्र जी! विद्वता से हल ढूँढा जा सकता है इस मुश्किल दौर से गुजरने का जितना एक ने बताया उतना दूसरा भी विद्वता अपनाये तो हम जीत के कुछ और निकट पहुँचते...
बहुत लाजवाब सृजन।
अप्रतिम सृजन!
जवाब देंहटाएंसादर।