यह घनघोर घटा
काली-काली
मुझे नहीं लगी
कतई निराली
करोना-काल में
आफ़त की क्या कमी थी
जो फ़सल बर्बाद करने
असमय बारिश भी आ गई
आसमान में लपलपाती
मेघप्रिया सौदामिनी
खलिहान जलाती
गूँजती भरपूर
डरावनी गड़गड़ाहट
किसान के दुश्मन
सरकारी फ़रमान
हुआ करते
अरे बादल तुम तो
थोड़ा संयम धरते।
© रवीन्द्र सिंह यादव
काली-काली
मुझे नहीं लगी
कतई निराली
करोना-काल में
आफ़त की क्या कमी थी
जो फ़सल बर्बाद करने
असमय बारिश भी आ गई
आसमान में लपलपाती
मेघप्रिया सौदामिनी
खलिहान जलाती
गूँजती भरपूर
डरावनी गड़गड़ाहट
किसान के दुश्मन
सरकारी फ़रमान
हुआ करते
अरे बादल तुम तो
थोड़ा संयम धरते।
© रवीन्द्र सिंह यादव
महामारी की त्रासदी पर मौसम का बिगड़ा मिज़ाज असहनीय है। काश!किसानों की फरियाद बादल सुन पाता। सुंदर शब्दावली के प्रयोग से रची गयी सार्थक अभिव्यक्ति।
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