तुम फ़रिश्ता हो
या शैतान
तुम्हारे कर्म तय करेंगे,
तुम रहनुमा हो
या दिग्भ्रामक
भावी पीढ़ी के लोग तय करेंगे।
तुमने किसी को
ऊपर उठाया है
या रचीं थीं साज़िशें
किसी को गिराने की
इंतज़ार करो
यह तो समय तय करेगा।
तुम इंसानीयत के साथ थे
या हैवानीयत के
जब इतिहास लिखा जाएगा
तो अवश्य दर्ज किया जाएगा।
तुम्हारी हमदर्दी
मज़लूम के साथ थी
या ज़ालिम के
तुम्हारी कार-गुज़ारियों के क़िस्से
दूर-दूर तक जाकर
हवा चीख़-चीख़कर कहेगी।
© रवीन्द्र सिंह यादव
या शैतान
तुम्हारे कर्म तय करेंगे,
तुम रहनुमा हो
या दिग्भ्रामक
भावी पीढ़ी के लोग तय करेंगे।
तुमने किसी को
ऊपर उठाया है
या रचीं थीं साज़िशें
किसी को गिराने की
इंतज़ार करो
यह तो समय तय करेगा।
तुम इंसानीयत के साथ थे
या हैवानीयत के
जब इतिहास लिखा जाएगा
तो अवश्य दर्ज किया जाएगा।
तुम्हारी हमदर्दी
मज़लूम के साथ थी
या ज़ालिम के
तुम्हारी कार-गुज़ारियों के क़िस्से
दूर-दूर तक जाकर
हवा चीख़-चीख़कर कहेगी।
© रवीन्द्र सिंह यादव
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०४-०४-२०२०) को "पोशाक का फेर "( चर्चा अंक-३६६१ ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
आदरणीय रवींद्रजी, आपका ब्लॉग फॉलो करने के बावजूद इसकी रचनाएँ मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं दिखती हैं। इसलिए इनको पढ़ने में पिछड़ जाती हूँ। अभी चर्चामंच पर देखा। बिल्कुल सही और सटीक अभिव्यक्ति है आज के परिप्रेक्ष्य में।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया मीना जी। ब्लॉग पर नया डॉमेन इंस्टॉल करते समय न जाने क्या गड़बड़ी हुई जो गूगल डॉमेन वाले भी न सुधार सके। अब 2022 मार्च तक यही स्थिति झेलनी है। कोई उपाय उपलब्ध होगा तो ज़रूर अपनाऊँगा। आपका बहुत-बहुत आभार इस बिंदु पर ध्यान आकृष्ट करने के लिये।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने ,ये वक़्त ही तय करेगा ,लाज़बाब सृजन सर ,सादर नमन आपको