चल पड़े हो
तो कट ही जाएगा
धीरे-धीरे दुरूह सफ़र,
विचलित है हृदय
देखकर
21 दिवसीय लॉक डाउन के बाद
घर की ओर जाते
पैदल ग़रीबों की ख़बर।
कमाल की हिम्मत है
हालात और
कोरोना वायरस से लड़ने की,
तुम्हें कौन समझाए
नियम-क़ानून, जुगत
महामारी से लड़ने की।
तुम हो भारत की
तथाकथित शान,
सरकार के समक्ष
अपनी बेबसी का
क़िस्सा न सुनाकर
बचाए रखते हो
अपना अमूल्य स्वाभिमान।
हो तुम वंचित
साधनहीन सर्वहारा
ग़रीब मेहनतकश,
तुमसे समाज का
साधनसंपन्न वर्ग
हद तक नफ़रत करता है
तड़कती है उसकी नस-नस।
तुम्हें मिलनेवाली
सरकारी राहत का
विरोध करता है
कहता है-
तुम बोझ हो पृथ्वी पर
तुम गंदगी-बीमारी-अपराध
फैलाते हो,
अर्थव्यवस्था पर
बोझ बढ़ाते हो।
और हाँ!
मैं भी तुम्हारी
नशाखोरी, अशिक्षा
जनसंख्या वृद्धि
अनावश्यक शौक
ग़ुलामी की आदत
फिज़ूलख़र्ची की प्रवृत्ति से
बहुत चिढ़ता हूँ,
मन ही मन ख़ूब कुढ़ता हूँ।
आज मैं लानत भेजता हूँ
सरकार
एनजीओ
समाजसेवियों
तथाकथित
देशभक्तों को
विदेश में फँसे
भारतियों को लाने हेतु
हवाई जहाज़ उपलब्ध है,
अफ़रातफ़री के माहौल में
घरों को लौटते
सैकड़ों किलोमीटर के
दुस्साहसी सफ़र पर
महानगरों से पैदल निकले
बच्चे, बूढ़े, जवान
कँधों पर लादे बच्चे-सामान
इन्हें पुलिस का
डंडाराज उपलब्ध है।
मत चलना
सरकारी सड़क पर
सड़क छील देगी
पाँवों की खाल
पुलिस उधेड़ देगी
भूखे-सूखे तन की चमड़ी,
क्योंकि तुम्हारे पास नहीं है
धेला-दमड़ी।
सड़क से उतरकर
चलना मिट्टी-घास पर
सूनी सपाट
पगडंडियों पर
एक-दूसरे से
कुछ मीटर की दूरी पर
एक-दूसरे से
कुछ मीटर की दूरी पर
राह में ज़रुर मिलेंगे कुछ लोग
पूछेंगे रोटी-पानी
बच्चों को दूध
हालचाल
भात-दाल
करते रहना हाथों की धुलाई
लंबी है लड़ाई
लंबी है लड़ाई
कोरोना महामारी,
मुसीबत में रखना नंबर साथ
मुसीबत में रखना नंबर साथ
+91-11-23978046
जीत लेंगे बाज़ी हम भी
मानवता अब तक न हारी।
©रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२९-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१४"मानवता "( चर्चाअंक - ३६५५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जीत लेंगे बाज़ी हम भी
जवाब देंहटाएंमानवता अब तक न हारी।
बिलकुल सही ,दिल द्रवित हो उठा आपकी रचना पढ़कर ,एक एक शब्द गहरा मर्म लिए ,सादर नमन आपको
बेहद खूबसूरत एवं मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसरकार
जवाब देंहटाएंएनजीओ
समाजसेवियों
तथाकथित
देशभक्तों को
विदेश में फँसे
भारतियों को लाने हेतु
हवाई जहाज़ उपलब्ध है,
अफ़रातफ़री के माहौल में
घरों को लौटते
सैकड़ों किलोमीटर के
दुस्साहसी सफ़र पर
महानगरों से पैदल निकले
सच में बड़ी विचारणीय स्थिति है आखिर यही है हमारी औकात .....इस डिजिटल दुनिया में हम अभी भी वहीं के वहीं हैं बेघर असहाय और पैदल।दो वक्त की रोटी की जुगत में भटकते...
बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सृजन।
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०१ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
हृदय स्पर्शी स्तरीय ।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंवाह!रविन्द्र जी ,एक-एक शब्द सटीक !
जवाब देंहटाएंअपने गाँव ,अपने घर पहुँचे लोग कितना सुकून महसूस कर रहे होंगे ..।