शुक्रवार, 27 मार्च 2020

पतझड़ को दया न आयी

बसंत बहार का यौवन थे

अनुपम अद्भुत श्रृंगार थे  

ये पीतवर्ण सूखे फूल-पत्ते,

पर्णविहीन टहनियों पर 

लटके रह गये हैं अब 

मधुमय मधुमक्खी के छत्ते।
  

अब पेड़ों के नीचे 

बिस्तर से बिछ गये हैं

वृक्ष के अलंकरण,

इनमें समाया है दर्द, 

आह-मिलन के एहसास 

प्रश्न जीवन-मरण। 


ख़ुशनुमा फ़ज़ाओं में 

सुनहले किसलय बने थे 

मधुमास की उमंगें,

सजल नत नयन नियति 

धरती-अंबर में लहराती 

परिवर्तन की तीव्र तरंगें। 


अचकचायीं आवारा हवाएँ

असमय ओले-बारिश 

करते बसंत विदाई,

जोड़े हाथ खड़ा कृषक खेत में 

क़ुदरत की करे ख़ुशामद 

फ़सल-ए-बहार रौंदने में 

पतझड़ को दया न आयी। 

  
सड़-गल जाएँगे 

सूखे सुमन अकड़ीं पत्तियाँ 

खाद बनकर मिट्टी में समाएँगे,

नश्वर जग में कौन अमर है

थे ऋतु में सुषमा जग की 

समय-चक्र के साथ पुनः 

जीवन महकाने आएँगे। 

© रवीन्द्र सिंह यादव


5 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा शनिवार(२८-०३-२०२०) को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. " नश्वर जग में कौन अमर है

    थे ऋतु में सुषमा जग की

    समय-चक्र के साथ पुनः

    जीवन महकाने आएँगे। "
    वाह आदरणीय सर बहुत सुंदर। जीवन दर्शन भी आ गया और ऋतूओं के रंग भी।
    अप्रतिम रचना। उत्कृष्टता से परिपूर्ण,सराहनीय।
    सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१७-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २१ 'किसलय' (चर्चा अंक-३७०४) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं

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