करोना काल की
तालाबंदी ने
छतें आबाद कर दीं हैं,
बाग़-बग़िया
सड़कें-गालियाँ
सूनी नाशाद कर दीं हैं।
छत पर आयी
किसी रमणी के
दर्शनार्थ
आते थे छतों पर युवक,
माँ-बापू की
आहट पाते ही
जाते थे
शरमाकर दुबक।
यह तो
गए ज़माने की
आई-गई बात है,
अब तो
मोबाइल पर ही
मनचाही मुलाक़ात है।
वीडियो कॉन्फ़्रेंस
जुड़े होने का एहसास
बरक़रार रखे है,
बावरा मन
तमन्नाओं के सागर में
उन्मुक्त नौकायन के लिए
उम्मीद की पतवार रखे है।
अब छतें निजता का
ख़याल रखतीं हैं,
पड़ोसियों की हलचल से
अनभिज्ञ रहने का
गुमान पाल रखतीं हैं।
एक-दूसरे के हिस्से की
चमकीली धूप
बहुत ऊँचीं छतों ने
हड़प ली है,
विटामिन-डी की
दवाओं ने
घरों में खिलौनों की
जगह हड़प ली है।
लाचारी में मिली
धूप ने
अपना असर किया होगा,
हड्डियों-मांसपेशियों का दर्द
कम हुआ होगा
दवा-व्यापार का कर्व
पसर गया होगा।
इस दौर में
कुछ ऐसे भी हैं
जो छतों को मुँहताज हैं
देश की बेघर आबादी
दसकों से
दरवाज़े-बालकनी के
इंतज़ार में है
ताकि वह भी किसी दिन
ताली-थाली,घंटी बजा सके
दीया-मोमबत्ती जलाकर
ख़ुद को गर्व से
देश से जुड़ा
महसूस सके!
©रवीन्द्र सिंह यादव
तालाबंदी ने
छतें आबाद कर दीं हैं,
बाग़-बग़िया
सड़कें-गालियाँ
सूनी नाशाद कर दीं हैं।
छत पर आयी
किसी रमणी के
दर्शनार्थ
आते थे छतों पर युवक,
माँ-बापू की
आहट पाते ही
जाते थे
शरमाकर दुबक।
यह तो
गए ज़माने की
आई-गई बात है,
अब तो
मोबाइल पर ही
मनचाही मुलाक़ात है।
वीडियो कॉन्फ़्रेंस
जुड़े होने का एहसास
बरक़रार रखे है,
बावरा मन
तमन्नाओं के सागर में
उन्मुक्त नौकायन के लिए
उम्मीद की पतवार रखे है।
अब छतें निजता का
ख़याल रखतीं हैं,
पड़ोसियों की हलचल से
अनभिज्ञ रहने का
गुमान पाल रखतीं हैं।
एक-दूसरे के हिस्से की
चमकीली धूप
बहुत ऊँचीं छतों ने
हड़प ली है,
विटामिन-डी की
दवाओं ने
घरों में खिलौनों की
जगह हड़प ली है।
लाचारी में मिली
धूप ने
अपना असर किया होगा,
हड्डियों-मांसपेशियों का दर्द
कम हुआ होगा
दवा-व्यापार का कर्व
पसर गया होगा।
इस दौर में
कुछ ऐसे भी हैं
जो छतों को मुँहताज हैं
देश की बेघर आबादी
दसकों से
दरवाज़े-बालकनी के
इंतज़ार में है
ताकि वह भी किसी दिन
ताली-थाली,घंटी बजा सके
दीया-मोमबत्ती जलाकर
ख़ुद को गर्व से
देश से जुड़ा
महसूस सके!
©रवीन्द्र सिंह यादव
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