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रविवार, 17 मई 2020

आपने देखा सड़कों पर तड़पता बिलखता आत्मनिर्भर भारत?



पत्थर हुआ जाता है

रोटी का कड़क कौर

जल के प्यासे होने का

आया है भयावह दौर

आत्मा को तलाश है 

मिले कहीं सुकून का ठौर

जहाँ स्वार्थ का हिसाब न बना हो सिरमौर  

एक अंतरध्वनि अब सोने नहीं देती

सड़कों पर तड़पते, बिलखते  

आत्मनिर्भर(?) भारत की तस्वीर...

श्रमजीवी लहू से लहूलुहान 

रेल पटरियाँ-सड़कें...

यह तो नहीं थी ख़्वाब की ताबीर...  

कचोटती है बस रोने नहीं देती 

कोविड-19 महामारी ने सिद्ध किया है कि 

समाज कितना आत्मकेन्द्रित हुआ है 

कितना संवेदनशील हुआ है 

कितना संवेदनाविहीन हुआ है 

जनहित के लिए बना शासन-प्रशासन 

कितना बेपरवाह,मूर्ख,निर्लज्ज और दुष्ट हुआ है

विज्ञान सहायक हुआ भी है 

तो बस समाज के 

अल्पसंख्यक कोने के लिए 

न बनाता हवाई जहाज़ / जलपोत 

तो करोना वायरस कैसे निकलता चीन से

खोजने होंगे अर्थ 

भविष्य के लिए कुछ समीचीन से 

इस बदलते दौर में 

महाशक्तियाँ किंकर्तव्यविमूढ़ हुईं 

क़ुदरत से राहत माँग रहीं हैं

अपनी विवशता की सीमाएँ लाँघ रहीं हैं 

जिन्हें अहंकार था सर्वेसर्वा होने का 

वे एक वायरस की चुनौती के समक्ष 

मजबूरन नत-मस्तक हुए हैं

दंभी,मक्कार, झूठे-फ़रेबी 

आज हमारे समक्ष बस मुए-से हैं।

©रवीन्द्र सिंह यादव


शब्दार्थ

सिरमौर = सिर + मौर अर्थात सर (शुद्ध रूप) का मौर (मौहर शुद्ध  रूप), सर का ताज, मुकुट /                                  CROWN  

11 टिप्‍पणियां:

  1. संवेदनशील कवि हृदय की समसामयिक परिस्थितियों के पके घाल से फूटकर बहती मार्मिक अभिव्यक्ति।
    व्यथाओं का निर्मम गान,
    अतड़ियों की कुहकती तान,
    अंतर्मन की पुकार पर बेबस
    मजबूर देख रहे बिलखती जान।

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  2. आपकी सभी पंक्तियाँ भीतर तक कचोटती है़ ..अनुज रविन्द्र जी । आखिर कब तक चलेगा ये ...बेबस भूखा इंसान कब तक और कैसे लडेगा ....

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  3. मर्मान्तक रचना रविन्द्र जी | अतिमहत्वाकांक्षी धनिक वर्ग द्वारा लायी गयी बीमारी को आमजनों विशेषकर श्रमिक वर्ग ने जिस तरह झेला उससे बहुत सारे प्रश्न आ खड़े हुए है | मजदूरों ने कितनी विपदा झेली इसका गवाह बनकर ये दौर इतिहास का कला पन्ना बनकर रहेगा---------|

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना "     (चर्चा अंक-3707)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  5. हृदय स्पर्शी सत्य।
    यथार्थ पर आपकी कलम दहला देती है भाई रविन्द्र जी ।
    पर सत्य से आंख भी कैसे मुंदे यथार्थ वादी कलम कार👌

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  6. बहुत ही सुंदर सार्थक सृजन आदरणीय सर. पढ़ते-पढ़ते शब्द चित्र डोल रहा है आँखों के सामने मज़दूर को मजबूर बनाया जा रहा है बेहतरीन सृजन.
    सादर

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  7. मार्मिकता से परिपूर्ण,सटीक पंक्तियाँ आदरणीय सर। इस कोरोना ने तो वो किया जो कोई नही कर सकता। हर भ्रम से पर्दा उठाकर सत्य का चेहरा दिखला दिया। एक भयानक सत्य जिसे देश के वो लोग भोग रहे जिनके कारण यह देश है वो श्रमिक,वो किसान और शायद हर आपदा में इन्हें हमेशा भोगना होगा। कोई पूछे भला क्यों तो कोई जवाब भी ना होगा।
    आपकी ये समसामयिक रचनाएँ अक्सर छुपे सत्य पर प्रहार करती है। कोटिशः नमन आदरणीय सर आपको और आपकी कलम को 🙏

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  8. आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-३ हेतु नामित की गयी है। )
    'बुधवार' 27 मई 2020 को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_27.html
    https://loktantrasanvad.blogspot.in/


    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  9. संवेदना से भरी बेहतरीन रचना
    बधाई

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आपकी टिप्पणी का स्वागत है.