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रविवार, 10 मई 2020

ईश्वर का साक्षात रूप है माँ

माँ तो केवल माँ होती

ईश्वर का साक्षात रूप है माँ

जो हर हाल में साथ होती है

माँ की मुस्कुराहट क्या होती है

देखा एक चैनल पर

महानगर से गांव की ओर

पैदल जाती एक्सप्रेस-वे पर

दोनों कंधों पर लादे बच्चे

हाथों में बचा-खुचा सामान

थकान से चूर पैरों में छाले

फिर भी कैमरे के समक्ष

ऐसी मुस्कुराहट

जो माँ होने का गर्वीला एहसास

हमारे दिलों में उतार देती है

यह क्लिप लॉकडाउन की बिडंबना का

अविस्मरणीय चित्र उतार देती है

माँ है विशाल वट-वृक्ष की

छाई छतनारी छांव

रचती रहती है

स्पंदन-अनुभूति का

नया-नबेला गुणात्मक गांव

माँ की गोद में समाया है लोक

संतति के जीवन में बिखेरती है आलोक

माँ थमा देती है तूलिका

ख़ुद बन जाती है कैनवास

उम्रभर गूँजती रहती है

माँ की झिड़की-प्रशंसाभरी बोली

एक सुखद एहसास

अब बहुत याद आता है

माँ की लोरी का वह स्वर

जब नींद आने तक

सुनाती थी रात के पहर

मेरे साथ एक दिन

वह स्वर भी लुप्त हो जाएगा

जो बस मेरे मस्तिष्क में रिकॉर्ड है!

  © रवीन्द्र सिंह यादव       

12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!अनुज रविन्द्र जी ,माँ शब्द ही एक ऐसा खूबसूरत अहसास है ..सारे जहाँ की खुशियाँ बस इस एक शब्द में समाई हैंं । एक अक्षर का ये शब्द सारी सृष्टि को स्वयं में समाहित कर लेता है ।

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  2. सही कहा आपने ,माँ तो सिर्फ माँ होती हैं ना गरीब ना अमीर ,ना बूढी ना जवान ,माँ के रूप का सुंदर चित्रण ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  3. अंतर भिगोती सुंदर प्रस्तुति।
    भाई रविन्द्र जी मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
    शानदार सृजन।
    माँ तो बस माँ होती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर एवं अंतस भिगोती मार्मिक अभिव्यक्ति... आँखें नम करता शब्द चित्र.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11 -5 -2020 ) को " ईश्वर का साक्षात रूप है माँ " (चर्चा अंक-3699) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा



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    1. क्षमा चाहती हूँ आमंत्रण में मैंने दिनांक गलत लिख दिया हैं ,आज 12 -5 -2020 की प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत हैं। असुविधा के लिए खेद हैं।

      हटाएं
  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 13 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. बहुत खूब रवींद्र जी, मां की छांव और ये कमबख्त लॉकडाउन .... दोनों को तुला की तरह साध कर मांयें अपनी कसौटी एक बार फ‍िर तय कर रही हैं

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  8. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच( सामूहिक भाव संस्कार संगम -- सबरंग क्षितिज [ पुस्तक समीक्षा ])पर 13 मई २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
    https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/05/blog-post_12.html
    https://loktantrasanvad.blogspot.in

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  9. देखा एक चैनल पर
    महानगर से गांव की ओर
    पैदल जाती एक्सप्रेस-वे पर
    दोनों कंधों पर लादे बच्चे
    हाथों में बचा-खुचा सामान
    थकान से चूर पैरों में छाले
    बच्चों के लिए माँ क्या क्या नहीं करती है
    माँ तो बस माँ होती है
    बहुत ही उत्कृष्ट लाजवाब सृजन माँ पर......
    बहुत बहुत बधाई आपको।

    जवाब देंहटाएं
  10. एक माँ को शब्द-सुमन से सम्मानित करती आपकी इस रचना को कोटिशः नमन आदरणीय सर। बेहद खूबसूरत सृजन,मार्मिकता से परिपूर्ण। सादर प्रणाम 🙏

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