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विरह वेदना
नाविक नैया खेते-खेते
तुम चले गए उस पार
बाट तुम्हारी हेरे-हेरे
थके नयन गए हार
बादल ठहरे होंगे कहीं
कहे क्षितिज की रेखा
संध्या का सफ़र शुरू होगा
हो न सकेगा अनदेखा
नदी शांत है आ जाओ
होगा मटमैला पानी
सांध्य-दीप साथ जलाना
होगी परिपूर्ण कहानी।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंअद्धभुत
जवाब देंहटाएंसराहनीय
जवाब देंहटाएंसांध्य दीप जलाने को आतुर हृदय...वाह बहुत खूब लिखा रवींद्र जी ..वाह
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