चित्र:महेन्द्र सिंह
कुसुम कलियाँ
कदाचित
कोमलता की कुटिलता को
कोसती होंगीं
जब कोई
पथरीला स्पर्श
उनकी रूह को छूकर
खिलने के उपरांत
मुरझाने का
सहजबोध लाता होगा।
© रवीन्द्र सिंह यादव
साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
चित्र:महेन्द्र सिंह
कुसुम कलियाँ
कदाचित
कोमलता की कुटिलता को
कोसती होंगीं
जब कोई
पथरीला स्पर्श
उनकी रूह को छूकर
खिलने के उपरांत
मुरझाने का
सहजबोध लाता होगा।
© रवीन्द्र सिंह यादव
कविता!
तुम्हें फिर ज़िंदा होना होगा
घृणा का सागर पीने हेतु
प्रेम और वैमनस्य के बीच
बनना होगा पुनि-पुनि सेतु
पथराई संवेदना पर
बिछानी होगी
मख़मली मिट्टी की चादर
ओक लगाकर
पीना होगा
महासागर-सा अप्रिय अनादर
रोपने होंगे बीज सद्भाव के
सहेजने होंगे
किसलय-कलियाँ,कुसुम-पल्लव
मिटाने होंगे दाग़ नासूर-घाव के
कविता!
तुम्हें जीना ही होगा
मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए
प्रबुद्ध मानवता की संरचना के लिए!
© रवीन्द्र सिंह यादव