साहित्य समाज का आईना है। भाव, विचार, दृष्टिकोण और अनुभूति का आतंरिक स्पर्श लोकदृष्टि के सर्जक हैं। यह सर्जना मानव मन को प्रभावित करती है और हमें संवेदना के शिखर की ओर ले जाती है। ज़माने की रफ़्तार के साथ ताल-सुर मिलाने का एक प्रयास आज (28-10-2016) अपनी यात्रा आरम्भ करता है...Copyright © रवीन्द्र सिंह यादव All Rights Reserved. Strict No Copy Policy. For Permission contact.
चित्र:महेन्द्र सिंह
कुसुम कलियाँ
कदाचित
कोमलता की कुटिलता को
कोसती होंगीं
जब कोई
पथरीला स्पर्श
उनकी रूह को छूकर
खिलने के उपरांत
मुरझाने का
सहजबोध लाता होगा।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 03 जूलाई 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!
सुन्दर रचना
मित्र, आज के विषैले माहौल में फूल खिलते कम हैं, मुरझाते ज़्यादा हैं.
कोमलता की कुटिलता वाह
आपकी टिप्पणी का स्वागत है.
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जवाब देंहटाएंमित्र, आज के विषैले माहौल में फूल खिलते कम हैं, मुरझाते ज़्यादा हैं.
जवाब देंहटाएंकोमलता की कुटिलता वाह
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