चित्र: महेन्द्र सिंह
दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल
बढ़ा रहे थे असमय हलचल
मैंने भी देखा उन्हें
नभ में
घुमड़ते-इतराते हुए
डराते-धमकाते हुए
आपस में टकराए
बरस गए
बहकर आ गए
मेरे पाँव तले
नदी की ओर बह चले
लंबा सफ़र तय करेंगे
सागर में जा मिलेंगे।
©रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शुक्रवार 11 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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