चित्र: महेन्द्र सिंह
दो गर्वोन्नत अहंकारी बादल
बढ़ा रहे थे असमय हलचल
मैंने भी देखा उन्हें
नभ में
घुमड़ते-इतराते हुए
डराते-धमकाते हुए
आपस में टकराए
बरस गए
बहकर आ गए
मेरे पाँव तले
नदी की ओर बह चले
लंबा सफ़र तय करेंगे
सागर में जा मिलेंगे।
©रवीन्द्र सिंह यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी का स्वागत है.