चित्र: महेन्द्र सिंह
मासूम भेड़ की ऊन
आधुनिक मशीनों से
उतारी जा रही है
भेड़ की असहमति
ठुकराई जा रही है
ज़बरन छीना जा रहा है
सौम्य कोमल क़ुदरती कवच
है कैसा इंसानी बुद्धिमत्ता का सच
तौहीन सहते-सहते
गुज़ारेगी ठंड का मौसम
कोसते काँपते-ठिठुरते हुए
कोई लुत्फ़ उठा रहा होगा
सर्दी के मौसम में इच्छित उष्णता का
ऊनी रज़ाई ओढ़ते हुए!
©रवीन्द्र सिंह यादव
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 29 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंवाह! अनुज रविन्द्र जी ,बहुत खूब! सही कहा आपनें बेचारे मूक प्राणी .....।
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