फूल से नाराज़ होकर
तितली सो गयी है,
बंद कमरों की अब
ऐसी हालत हो गयी है।.........(1 )
हो चला सयाना फूल
ज़माने के साथ-साथ ,
मुरझाई हैं पाँखें
महक भी रो गयी है।
बंद कमरों की अब
ऐसी हालत हो गयी है।.........(2 )
नसीहत अब कोई
हलक़ से नीचे जाती नहीं,
दिल्लगी की प्यारी खनक
अब हमसे खो गयी है।
बंद कमरों की अब
ऐसी हालत हो गयी है।.........(3 )
आशियाँ दिलक़श बने
जो तेरी शोख़ियाँ हों,
ताज़ा हवा आँगन में
बीज-ए -ख़ुलूस बो गयी है।
बंद कमरों की अब
ऐसी हालत हो गयी है।.........(4 )
यादों के आग़ोश में
बैठा हुआ है बोझिल दिल,
एक मुलाक़ात मैल मन का
मनभर धो गयी है।
बंद कमरों की अब
ऐसी हालत हो गयी है।.........(5 )
@रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-10-2019) को "नन्हा-सा पौधा तुलसी का" (चर्चा अंक- 3478) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ऐसी वेदना? ऐसी निराशा?
जवाब देंहटाएंमित्र ! बंद कमरे से बाहर निकल कर आओ और अच्छे दिनों का आनंद लो !
वाह
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम आदरणीय रवीन्दर जी -शब्द नहीं है आप के सृजन की किन शब्दों से तारीफ़ करूँ |असीम वेदना समाहित है एक- एक शब्द में,करुण भाव में बहता एहसास... बस लाज़वाब और लाज़वाब..
जवाब देंहटाएंसादर