शिशिर ने बसंत को सौंपी थीं
मौसम की मासूम धड़कनें
अवनि-अंबर में छट गईं
कोहरे की क़ाएम अड़चनें
फाल्गुन, चैत्र महीने
खेत-खलिहान, किसान
महकती मोहक बयार
हृदय में रचने लगे सृजन
गेहूँ-जौ की सुनहरी बालियाँ
गीत गातीं विहंग-वृंद बोलियाँ
आतुर हुए रंग-बिरंगे फूल-पत्तियाँ
सजे सरसों के खेत और क्यारियाँ
गुनगुनी धूप समाई
पुलकित-व्यथित अंतरमन की गहराइयों में
कोकिला की कोमल कूक
गूँजी सुदूर सघन अमराइयों में
गीष्म की प्रताड़ना और पतझड़ का
कल्पित भय दिखाकर
बसंत तुम इस बार फिर चले जाओगे...
आस है कि तुम फिर चले आओगे।
© रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 24 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
उम्मीद बनी रहे
जवाब देंहटाएंवाह!अनुज रविन्द्र जी ,बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबसंत तुम इस बार फिर चले जाओगे...
जवाब देंहटाएंआस है कि तुम फिर चले आओगे।
बहुत सुंदर रचना ।
आह ऐसा सुंदर चित्रण अब सिर्फ किताबों और लिखावटों में ही देखने और सुनने को मिलता है बहुत ही सुंदर पोस्ट शुभकामनायें आपको ।
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