उन मासूमों के माता-पिता
आल्हादित थे
रेत के कलात्मक घरौंदे देखकर
जो नन्हे हाथों ने चटपट लगन से बनाए थे
हौसलों की उन्मुक्त उड़ान
फूल और पत्तियों से सजाए थे।
बच्चों का रचनात्मक श्रम
औरों को भी आकर्षित कर रहा था
कुछ और बच्चे आए
जुट गए उमंगोल्लास से घरौंदा बनाने
मनोहारी शांत नदी का किनारा
ख़ुशनुमा माहौल से चहक रहा था
पक्षियों का कलरव मोहक हो
आसमान में गूँज रहा था।
अचानक तेज़ हवा बही
नदी का जल
लहरों की शक्ल में
किनारे की ओर उमड़ा
पलभर में नज़ारा बदल गया
मुरझा गए सुकोमल मासूम चेहरे
श्रम ने जो शब्द सृजित किए थे
वे ख़ामोश हो गये थे...!
माता-पिता आशावाद का
नीरस-सरस पाठ पढ़ाते हुए
नन्हे-मुन्ने छौनों के
आँसू पौंछते
घर लौट आए...!!
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन ..जीवन का पाठ पढ़ाता।
जवाब देंहटाएंसादर