शिशिर का प्रकोप ढलान पर
आया ऋतुराज बसंत दालान पर
खेत-खलिहान / बाग़-बग़ीचे
पीलिमा-लालिमा / हरीतिमा का सुरभित आभामंडल,
आहिस्ता-आहिस्ता कपड़े सुखाती गुनगुनी धूप
पुष्प-पत्तों दूब-नलिका ने पहने ओस के कुंडल।
सरसों के पीले फूल
गेंहूँ-जौ की नवोदित बालियाँ / दहकते ढाक-पलाश,
आम्र-मंजरियों के सुनहले गर्वीले गुच्छ
आम्र-मंजरियों के सुनहले गर्वीले गुच्छ
सृष्टि का सरस सामीप्य साकार सौंदर्य
मोहक हो पूरी करता मन की तलाश।
पक्षियों का कर्णप्रिय कलरव,
मानो गा रहा कोई
रसमय राग भैरव।
आ गया बसंत
अल्हड़ मन पर छा गया बसंत,
प्रकृति के प्रवाह में
होता नहीं कोमा या हलंत।
उत्सव मनाओ क़ुदरती मेलों में
जीओ सजीव सार्थक बसंत,
पोस्टर, कलेंडर, फिल्मांकन, अंतरजाल में
हम ढूँढ़ते हैं आभासी अनमना निर्जीव बसंत।
@रवीन्द्र सिंह यादव
रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को "आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोस्टर, कलेंडर, फिल्मांकन, अंतरजाल में
जवाब देंहटाएंहम ढूँढ़ते हैं आभासी अनमना निर्जीव बसंत
सत्य कहा.... ,बेहतरीन सृजन ,सादर नमन आपको