ये कहाँ से
आ गयी बहार है ,
बंद तो
मेरी गली का द्वार है। ....(1)
ख़्वाहिशें टकरा के
चूर हो गयीं,
हसरतों का दर्द
अभी उधार है।
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।....(2)
नफ़रतों के तीर
छलनी कर गए जिगर ,
वक़्त लाएगा मरहम
जिसका इंतज़ार है।
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।.....(3)
बदल गए हैं
इश्क़ के अंदाज़ अब,
उल्फ़तों का
सज गया बाज़ार है।
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।....(4)
अरमान बिखर जाएँ तो
संभाल लेना दिल,
छीनता है एक
वो देता हज़ार है।
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।.....(5)
टूटते हैं रोज़-रोज़
तारे आसमान में ,
"रवीन्द्र " को तो
ज़िन्दगी से प्यार है।
बंद तो
मेरी गली का द्वार है।...(6)
@रवीन्द्र सिंह यादव
इस रचना का यू ट्यूब विडियो लिंक- https://youtu.be/6n-Og0O8cTE
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-10-2019) को "सूखे कलम-दवात" (चर्चा अंक- 3489) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत उम्दा।
जवाब देंहटाएंअभिनव अप्रतिम।
वाह बहुत सुंदर गीत आदरणीय सर 👌
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव लिए अनुपम रचना
सादर नमन 🙏