चल नहीं पाते उठाकर
अब हम क़दम दो-चार
पूर्वाग्रही सूचनाओं की
आयी अजब भरमार
कहते फिर भी हम उसे
निर्भीक निष्पक्ष अख़बार
ज़ेहनियत होती जाती बीमार
समाया रग-रग में भ्रष्टाचार
नैतिकता बेबस खड़ी उस पार
बदल गया है क़ायदा कारोबार
कहीं पौ-बारह कोई हुआ लाचार
मन पर बढ़ता क्रोध का अम्बार
परे होंगे त्रासद मनोविकार
आओ छेड़ें सरगम के तार
प्रकृति को आने दो घर-द्वार
सुनो बच्चों की चुलबुली पुकार
भरेगा भावुक ह्रदय में प्यार।
© रवीन्द्र सिंह यादव
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना 🙏
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अभिलाषा जी रचना पर अपनी पसंद ज़ाहिर करने के लिये.
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सोहराब मोदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय हर्षवर्धन जी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिये.
हटाएंअद्भुत, बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/11/94.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह!!रविन्द्र जी ,बेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब जो बस में न हो उसे खूबसूरत मोड दे दो।
जवाब देंहटाएंविचारशील रचना।
अप्रतिम अद्भुत
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-11-2019) को "समय बड़ा बलवान" (चर्चा अंक- 3525) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
काश आपकी पंक्तियों में निहित संदेश जन जन के मन तक पहुंचे। बेहद विचारणीय सृजन आदरणीय सर। बहुत खूबसूरत 👌
जवाब देंहटाएंसादर नमन सुप्रभात 🙏