मैं अपनी कश्ती पार लाकर,
समुंदरों को दिखा रहा हूँ।
जीवन के ये गीत रचे जो,
मज़लूमों को सुना रहा हूँ।
चला हूँ जब से कँटीले पथ पर,
पाँव के छाले छुपा रहा हूँ।
उतर गया हूँ सागर तल में,
प्यार के मोती उठा रहा हूँ।
अहंकार के दावानल में,
प्रेम की बूँदें गिरा रहा हूँ।
जहाँ बुझ गया चाँद फ़लक का,
चराग़ होना सिखा रहा हूँ।
इंसानियत के कारवाँ में,
जुड़ो अभी मैं बुला रहा हूँ।
उदास बैठी सूनी घाटी में,
उम्मीद के फूल खिला रहा हूँ।
अंधकार से डरना छोड़ो,
मैं एक दीपक जला रहा हूँ।
© रवीन्द्र सिंह यादव
वाह्ह्ह... वाह्ह्ह.... लाज़वाब.. शानदार.. ग़ज़ल...हर बंध बहुत ही सुंदर गेय रचना आदरणीय रवींंद्र जी..बधाई आपको बहुत सारा..।
जवाब देंहटाएंवाह!!रविन्द्र जी ,बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..श्रीमान !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति आदरणीय।
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ. क्या कहूँ. जोश और ओज से परिपूर्ण रचना 👏 👏 👏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सहज और प्रेरणादायी रचना।
जवाब देंहटाएं"...
इंसानियत के कारवाँ में,
जुड़ो अभी मैं बुला रहा हूँ।
..."
जोश और जूनून से लबरेज़ एक जुनूनी रचना। समुंदरों को दिखा रहा हूँ ,मैं अपनी कश्ती पार लाकर ....बहुत ही बेहतरीन पंक्ति है। बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंइंसानियत के कारवाँ में,
जवाब देंहटाएंजुड़ो अभी मैं बुला रहा हूँ।
vaah...
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/98.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमैं एक दीप जला रहा हूं।
बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंहर शेर मुखर ... स्पष्टता से आपकी बात रख रहा है और गज़ब कह रहा है ...
दिली दाद कबूल करें रविन्द्र जी ...
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल !!!!
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक शेर....
जहाँ बुझ गया चाँद फ़लक का,
चराग़ होना सिखा रहा हूँ।
बहुत ही उम्दा....
वाह!!!!
सकारात्मकता की ज्योति से भरपूर अनुपम सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंशानदार रचना
जवाब देंहटाएंवाह
मंत्रमुग्ध करती रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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