फ़ासले
क़ुर्बतों में बदलेंगे
एक रोज़,
होने नहीं देंगे
हम
इंसानियत को
ज़मीं-दोज़।
फ़ासले
पैदा करना तो
सियासत की
रिवायत है,
अदब को
आज तक
अपनी
ज़ुबाँ की
आदत है।
आग
बाहर तो दिखती है
अंदर भी
रहा करती है,
भूमंडलीकरण का
बे-हया धुआँ है
चिड़िया
ख़ौफ़ में
उड़ा करती है।
प्रियंवदा/ प्रियंवद की
तलाश
जारी रहेगी जहां में
अनवरत,
ज़माने की
बेरहम हवाएँ
कर लें
पुरज़ोर
जी भरकर ख़िलाफ़त।
© रवीन्द्र सिंह यादव
शब्दार्थ /Word Meanings
फ़ासले = दूरी, दूरियाँ, अंतर / Distance
क़ुर्बतों में = नज़दीकियों में, निकटताओं में / In Nearness
ज़मीं-दोज़ = भूमिगत, ज़मीन के अंदर / Underground
सियासत = राजनीति / Politics
रिवायत = परंपरा / Tradition
प्रियंवदा/ प्रियंवद = प्रिय बोलने वाली / वाला, मृदुभाषी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-12-2019) को "आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास" (चर्चा अंक-3553) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर बहुत खूब लिखा आपने।
सटीक।
सादर प्रणाम 🙏
बहुत अच्छी कविता
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रियंवदा/ प्रियंवद की
जवाब देंहटाएंतलाश
जारी रहेगी जहां में
अनवरत,
सही कहा बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन..
वाह!!!
नये साल की अग्रिम शुभकामनाएं