रविवार, 8 नवंबर 2020

चुल्लूभर पानी

 तुम्हारे लिए 

कोई 

चुल्लूभर पानी 

लिए खड़ा है 

शर्म हो 

तो डूब मरो... 

नहीं तो 

अपनी गिरेबाँ में 

बार-बार झाँको 

ज़रा सोचो!

तुम्हारी करतूत 

इतिहास का 

कौनसा अध्याय 

लिख चुकी है?

पीढ़ियाँ 

जवाब देते-देते ऊब जाएँगीं।

© रवीन्द्र सिंह यादव

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-11-2020) को   "आवाज़ मन की"  (चर्चा अंक- 3882)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह क्या बात है शानदार रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह रवीन्द्र जी... लाजवाब रचना है

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...