रविवार, 20 दिसंबर 2020

किसान आंदोलन


रबी फ़सल कातिक में बो आए हो

हक माँगने दिल्ली की सीमा पर आए हो

अगहन गुज़र गया धीरे-धीरे 

सतह पा गए बीज सभी कारे-पीरे 

धरती ने ओढ़ा दुकूल हरियाला 

फ़सल माँगे पानी भर-भर नाला

बिजूका कब तक करे अकेला रखवाली 

चरे आवारा मवेशी जहाँ न किसान न माली

क्यारी-क्यारी की करुण अनुगूँज सुनो 

मिलजुलकर फ़सल खड़ी-बड़ी करो

श्रम-उत्पादन ख़ून-पसीना सब किसान के पाले में 

दाम मुनाफ़ा और तरक़्क़ी जा पहुँचे किसके पाले में?

पूस की रातें बड़ी कठिन हैं कृशकाय निरीह किसान कीं 

चर्चा अब फैली है गली-गली क्रूर-निष्ठुर सरकारी ईमान की

 एकता एक दिन करती है झुकने को मजबूर

मज़बूत इरादों के आगे होगा दंभ सत्ता का चूर

माघ मास में फिर फ़सलें माँगेंगीं पानी 

संभव है हो जाए क़ुदरत की मेहरबानी

पकने लग जाएँगीं फ़सलें फागुन आते-आते 

ले आना नया अनाज मंडी में चैत-बैसाख जाते-जाते

मत भूलना शहीद हुए जो साथी संघर्षों की राहों में 

वो सुबह भी आएगी जब ख़ुशियाँ झूलेंगीं अपनी बाहों में 

आंदोलन की राहें भले अब और कठिन हो जाएँगीं 

सत्ता के आगे ख़ुद्दार आँखें दया की भीख नहीं माँगेंगीं।

© रवीन्द्र सिंह यादव

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-12-2020) को   "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन"  (चर्चा अंक-3928)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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