बुधवार, 13 जनवरी 2021

समझ अब देर तक राह भूली है


देख रहा है सारा आलम

खेतों में सरसों फूली है

ओस से भीगी शाख़ पर 

नन्ही चिड़िया झूली है 

परेड की चिंता न समिति की फ़िक्र

हँसिया के बियाह में खुरपी का ज़िक्र 

खेत के पहरेदारों संग अनशन में बैठे

सत्ता की नज़रों में वे गाजर-मूली हैं 

ख़ुद के कंधों पर ख़ुद को ढोना

उनसे सीख लो मगर-सा रोना

लज्जाहीन न समझेंगे अब वो 

दंभ में अक्ल राह अब भूली है।

© रवीन्द्र सिंह यादव

10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 15-01-2021) को "सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप"(चर्चा अंक- 3947) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. हँसिया के बियाह में खुरपी का जिक्र करके कितना कुछ कह दिया है । प्रभावी अंदाज ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस समय की शानदार कविता
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सुबह की भूली शायद शाम को घर आ जाए

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 16 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

    जवाब देंहटाएं
  6. देख रहा है सारा आलम
    खेतों में सरसों फूली है
    ओस से भीगी शाख़ पर
    नन्ही चिड़िया झूली है
    B
    मधुर काव्य जिसमें प्रकृति का सुंदर चित्र और धरती पुत्रों की दशा, दिशा पर सटीक चिंतन आदरणीय रवींद्र भाई। हार्दिक शुभकामनाएं🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  7. देख रहा है सारा आलम
    खेतों में सरसों फूली है
    ओस से भीगी शाख़ पर
    नन्ही चिड़िया झूली है

    बहुत सुंदर रचना...

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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