मंगलवार, 5 जनवरी 2021

धूप-छाँव का हिसाब


ऐ धूप के तलबगार
 
तुम्हारी गली तो छाँव की दीवानी है

कम-ओ-बेश यही हर शहर की कहानी है

धूप के बदलते तेवर ऐसे हुए 

ज्यों तूफ़ान में साहिल की उम्मीद  

धूप की ख़्वाहिश में 

अँधेरी गलियाँ कब हुईं ना-उम्मीद

धूप के रोड़े हुए शहर में 

सरसब्ज़ शजर के साथ बहुमंज़िला इमारतें

इंसान की करतूत है 

लूट लेने को आतुर हुआ है क़ुदरती इनायतें  

धूप मनभावन होने का वक़्त सीमित है

धूप-छाँव का रिश्ता नियमित है  

याद आते हैं महाकवि अज्ञेय जी 

धूप से थोड़ी-सी गरमाई उधार माँगते हुए

मानव कहाँ पहुँचा है तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ लाँघते हुए...?

छाँव ने क्या-क्या दिया...? 

क्या-क्या छीन लिया...? 

हिसाब लगाते-लगाते जीवन बिता दिया। 

©रवीन्द्र सिंह यादव


शब्दों के अर्थ / WORD MEANINGS 

1.तलबगार = साधक, अन्वेषक, तलाश करनेवाला / SEEKER

2.कम-ओ-बेश = न्यूनाधिक / LESS OR MORE, MORE OR LESS   

5 टिप्‍पणियां:

  1. मानव कहाँ पहुँचा है तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ लाँघते हुए...?

    छाँव ने क्या-क्या दिया...?

    क्या-क्या छीन लिया...?

    हिसाब लगाते-लगाते जीवन बिता दिया।


    यथार्थ का वास्तविक चित्रण
    साधुवाद 🙏🌹🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाहह..बहुत खूबसूरत शब्द चित्रण.. धूप के तलबगार।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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