ह्रदय का असहज स्पंदन
फूलों की गमक-सा
बिखर गया है
पहाड़ कटने का क्रूर संगीत सुन
बदन सिहर गया है
स्मृतियों के खुरदरे फ़र्श पर
इतिहास का पन्ना खुल गया है
गुमनाम आँसुओं की धार से धुलकर
निरंकुश सत्ता का मुखौटा
ख़ौफ़नाक हो गया है
विधि-विधान की लगाम
किसको सौंप दी हमने
लाचारी की चादर ओढ़
लोक सारा सो गया है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (०६-०४-२०२३) को 'बरकत'(चर्चा अंक-४६५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर