शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

मदद के लिए गुहार आठ किलोमीटर!

चीख़ती चलती चली गई 

वह किशोरी 

माँगती हुई मदद दर-दर दर्द से कराहती 

पैदल भागती आठ किलोमीटर

उज्जैन का वह पथ 

थी ख़ून से लथपथ 

वह बलात्कार पीड़िता

हाय! फुक गया है 

समाज की संवेदना का मीटर 

एक नेक युवा पुजारी ने 

अनेक किंतु-परंतुओं को 

विराम देते हुए 

पीड़िता की मदद की

खींची लकीर इंसानियत की 

गुफाओं से निकलकर 

भव्य अट्टालिकाओं में आ बसा

आधुनिक स्वार्थी समाज 

संवेदना को मारकर

आज कितना सभ्य हुआ है?

सामाजिक मूल्यों का कैनवास

कितना भव्य हुआ है?

अफ़सोस!

हमारी गुफा में अंधकार

अब और गहरा गया है

हमारे अंतस में घृणा को

किरायेदार बनाकर कोई ठहरा गया है!

©रवीन्द्र सिंह यादव 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद मार्मिक और कटु सत्य को अभिव्यक्त करने वाली रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. दोस्त, महाकाल की नगरी में जो कुछ हुआ, उसे भूल जाओ और याद रखो कि यह वर्ष नारी-उत्थान का , नारी-शक्ति वन्दना का, नारी-सम्मान का और उनके लिए चुनाव में 33% आरक्षण का है.

    जवाब देंहटाएं
  3. बेनामी10/03/2023 11:15:00 am

    मनु मृत्यु शय्या पर पड़ा है उससे भला कैसी उम्मीद।
    मार्मिक पंक्तियाँ सर। प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं

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