झाड़ी हाँफ रही थी
उस रात
जब
ख़ुशी मनाने की सनक
ऐसी कि धमाके की क्रूर ध्वनि
दूर-दूर तक पहुँचे
ख़ुशी दीवाली की हो
या मैच जीतने की
बारूद का धुँआँ
झाड़ी की पत्तियों के
स्टोमेटा का
मुख अवरुद्द करता
कुछ दिन उपरांत
झाड़ी सूख जाती है
बारूदी धुँएँ के महीन कण
मासूम बच्चों के फेफड़ों में
जबरन धँस जाते हैं
उनकी तड़प बढ़ा देते हैं
श्वास-प्रश्वास का विधान
विकृत कर देते हैं
जिसे सुनकर
समझदार लोग
एयर प्यूरीफायर लगे घर से
मुख पर मास्क लगाकर
बस इतना ही कहते हैं-
बच्चा भूखा होगा...
©रवीन्द्र सिंह यादव
हृदय स्पर्शी समसामयिक सार्थक रचना सादर
जवाब देंहटाएंउत्तम व अनुकरणीय सृजन आदरणीय
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