मंगलवार, 20 जून 2017

बारिश फिर आ गयी


बारिश फिर आ गयी

उनींदे सपनों को

हलके-हलके छींटों ने

जगा दिया

ठंडी नम  हवाओं ने

खोलकर झरोखे

धीरे से कानों में

कुछ कह दिया।


बारिश में उतरे हैं

धरा पर कई रंग

शोख़ियाँ-ख़्वाहिशें

सवार होती हैं मेघों पर

यादों के टुकड़े इकट्ठे हुए

तो अरमानों की नाव बही रेलों पर

होती  है रिमझिम बरसात

टकराते हैं जब काले गहरे बादल

फिर चमकती हैं बिजलियाँ

भीग जाता है धरती का आँचल।


बदरा घिर आये काले-काले

बावरा मन ले रहा हिचकोले

नाच रहे  हैं मयूर वन में

उमंगें उठ रही हैं मन-उपवन में

प्यारे पपीहा के बोल सुन

एक बावरी गुनगुना रही है हौले-हौले

उड़-उड़ धानी चुनरिया मतवाली हवा के बोल बोले।


बूँदों की सुरीली सरगम

पनीले पत्तों की सरसराहट

मिट्टी की सौंधी मोहक महक

हवाओं की अलमस्त हलचल

शीशों पर सरकते पानी की रवानी

सुहाने मौसम की लौट आयी कहानी पुरानी।


खिड़की  से बाहर

हाथ  पसारकर

नन्ही-नन्ही  बूंदों को हथेली में भरना

फिर हवा के झौंकों में लिपटी फुहारों में

तुम्हारे सुनहरे गेसुओं की

लहराती लरज़ती लटों का भीग जाना

याद है अब तक झूले पर झूलना-झुलाना

शायद तुम्हें भी हो...?


कुम्हलाई सुमन पाँखें

निखर उठी हैं

एक नज़र के लिए

लगे हैं चाँद पर घनी घटाओं के पहरे

चला हूँ  फिर भी सफ़र के लिए

यादों का जर्जर झुरमुट

हो गया है फिर हरा

मिले हैं मेरे आसूँ भी

है जो बारिश का पानी

तुम्हारी गली से बह रहा।


हमसे आगे

चल रहा था कोई

किस गली में मुड़ गया

अब क्या पता!

बेरहम बारिश ने

क़दमों के निशां भी धो डाले...!

©रवीन्द्र सिंह यादव

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-06-2020) को "चर्चा मंच आपकी सृजनशीलता"  (चर्चा अंक-3742)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!लाजवाब सृजन आदरणीय सर .प्रकृति का मोहक चित्रण .निशब्द करते प्रतीक ...

    यादों के टुकड़े इकट्ठे हुए
    तो अरमानों की नाव बही रेलों पर
    होती है रिमझिम बरसात
    टकराते हैं जब काले गहरे बादल
    फिर चमकती हैं बिजलियाँ
    भीग जाता है धरती का आँचल।...वाह !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह अद्भुत विरह श्रृंगार का अनुपम सृजन !
    बारिश के समय होने वाली हर छोटी से छोटी गतिविधियों को कितनी सुंदरता से सहेजा है आपने भाई रविन्द्र जी मंत्र मुग्ध करती आपकी सुंदर रचना , प्राकृतिक सौंदर्य को सहजता से समेटे हुए।
    अभिनव।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकृति और मन की भावनाओं का सुन्दर संगम । बहुत सुन्दरता से वर्षाकाल का अनुपम वर्णन ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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