मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
पढ़ना-लिखना सब चाहें,
अफ़सर बनना सब चाहें,
अन्न उगाने माटी में सनकर,
मैं देखूँ खेत-खलिहान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
सूरज उगने से पहले जागूँ,
पशुओं का चारा लेने भागूँ,
रूखी-सूखी खाकर,
है ऊँचा स्वाभिमान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
मानसून की मर्ज़ी पर,
मेरी फ़सलें उग पाती हैं,
देख-देखकर अंबर को,
मेरी आँखें पथरा जाती हैं,
पानी भर जाए खेतों में,
तब रोपूँ अपना धान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
खाद-बीज, बिजली,डीज़ल,
सब ख़र्चे मुझे सताते हैं,
शहरों में बैठे डॉक्टर / व्यापारी,
माल लेकर मुझे बुलाते हैं,
रेत-सी फिसले मेरी कमाई,
मैं कहाँ इतना धनवान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
बैंक मुझे क़र्ज़ा दे देकर,
ठगने का जाल रचाते हैं,
कट जाता खाते से पैसा,
मौसम का हाल बताते हैं,
फ़सल-बीमा की ठग-विद्या से,
समझो सरकारी ईमान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
सरकारों के यार-दोस्त हैं,
गाँवों के चतुर साहूकार,
बुला-बुलाकर क़र्ज़ा देते,
बसूली में होती हाहाकार,
देते-देते ब्याज क़र्ज़ का,
लुट जाते गहने,खेत-मकान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
शोषण के चक्रव्यूह में,
फँसते जाते ग़रीब किसान,
झूठे वादे करते-करते,
सरकारें बन जातीं निष्ठुर-अनजान,
लाखों ज़हर की गोली खाकर,
तज गए अपने प्राण,
फाँसी के फंदे पर बेचारे लटके मिले किसान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
किसान क़र्ज़-माफ़ी को,
फ़ैशन बता रही सरकार,
हैं वे किसके यार दो-चार,
बैंकों का जो लाखों करोड़ गए डकार?
करोड़ों वोट हमारे हैं,
हम क्यों करें अपनी जान क़ुर्बान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
ओले,बारिश,तूफ़ान,तुषार,
कीड़ों और सूखे की मार,
फ़सल बोऊँ तो न बरसे पानी,
फ़सल पके तो बरसे पानी,
कभी-कभी होता है ,
मौसम मुझपर मेहरबान,
मैं भारत की शान ,
कहते मुझे किसान।
भरपूर हुई जब पैदावार,
खींचे पाँव पीछे सरकार,
फ़सल में खोट बताकर,
एमएसपी पर लेने से करती इंकार,
मौज़ करते मोज़ाम्बिक के किसान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
संसद से पास हुए ,
क़ानून की इज़्ज़त रख लेता हूँ,
"मैं ग़रीब परिवार से हूँ, मेरा नाम रमुआ...सुखिया है,
मैं एनएफएसए से सस्ता राशन लेता हूँ"
मेरे घर की दीवार पर,
लिखवा दिया है सरकारी फ़रमान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
सीमा पर किसान का बेटा,
दुश्मन की गोली खाता है,
मंदसौर में किसान का बेटा,
पुलिस की गोली खाता है,
धोती-कुर्ता और अंगौछा,
थी कभी मेरी पहचान,
बदले वक़्त में मैंने भी,
अब बदल दिए परिधान।
मैं भारत की शान
कहते मुझे किसान।
लदाई-उतराई, ढुलाई-तुलाई का,
न जाने हिसाब सरकार,
ई-मंडी और लैस कैश का,
करती दिन-रात धुआँधार प्रचार,
दे-दे पैसा अभिनेता को,
अक़्ल मुझे सिखाई जाती है,
मेरे नाम पर धूर्तों को,
मलाई ख़ूब खिलाई जाती है,
ऐसे बनेगा मेरा देश महान?
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
माल मेरा खेतों में सड़ता,
या सड़कों पर बिखरा मिलता,
मिलता नहीं पूरा-ड्यौढ़ा दाम,
मेरे पास कहाँ होती है,
अमीरों-सी शहरों में सजी दुकान,
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
हमें मिलेगा फ़सल का,
अपनी पूरा-पूरा दाम,
साथ चलेंगे जब हम सब,
हाथ एक-दूजे का थाम,
तिलहन, अनाज या दालें,
फल, सब्ज़ी, दूध, मसाले,
ये सब मेरी पहचान,
क्यों करते हो मेरा अपमान?
मैं भारत की शान,
कहते मुझे किसान।
© रवीन्द्र सिंह यादव
इस रचना को सस्वर सुनने के लिए मेरे You Tube चैनल "मेरे शब्द-स्वर "(Mere Shabd -Swar ) का लिंक - https://youtu.be/342PrqwLWJw
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