ख़्वाब जब -जब
खंडहर में भटकते हैं
तो बेजान पत्थरों से
गुफ़्तुगू करते हैं।
ख़ामोशियों के साये में
दिल शोलों में जलता है
ज़ुबाँ पत्थर की होती है
एहसास गुज़रें कहाँ से
रास्ते के पत्थर भारी हो चले हैं।
फ़ना हो वजूद
उससे पहले
जगाओ सोये हुए दर्द
सारे ग़मों का तूफ़ान
नई राह ढूँढ़ लेगा।
ज़माने की बातों से
ख़फ़ा हैं पत्थर
ये कैसी रंजिश है
मोम से दिल को
संग -दिल कह दिया
बात बढ़ते -बढ़ते कभी
पत्थर के सनम कह दिया।
वक़्त बताता है पत्थर की क़दर
पाषाण -युग से ऐतिहासिक ढाचों तक
इमारत की बुनियाद हो / मूर्ति हो
या कोई शिलालेख
विश्वास पत्थरों में ही तलाशा गया
सदियों से टिके हैं पत्थर
निखरे हैं ख़ूब जब -जब तराशा गया।
पत्थरों से गहरे
घाव फूल देते हैं
गुलों की हिफ़ाज़त में
जान अपनी शूल देते हैं
फूल पत्थरों पर उकेरे जाते हैं
बेवफ़ा आशिक़
पत्थर-दिल पुकारे जाते हैं
लोग कहते हैं -पत्थर पिघल जाते हैं
फिर भी घर की दीवारें बनाते हैं।
पत्थरों को नाज़ है
दिल से चाहने वालों पर
जो नाम लिख गए मिटे नहीं
फूलों की तारीफ़ पत्थर का दिल नहीं जलाती
फूलों के आसपास भँवरे गाते तितलियाँ मड़रातीं
होता है पत्थरों को भी फ़ख़्र
जब कोई क़द्रदान क़रीब होता है
होती हैं तमन्नाएँ पत्थर की भी
तज़ुर्बा फूल से कहीं अधिक होता है।
धूप ,बारिश ,सर्द हवाऐं
मिला देती हैं ख़ाक़ में पत्थरों को
कौन रोक पाया है मिटकर बनने से दोबारा पत्थरों को
झेली बहुत हैं पत्थरों ने
तोहमतें बदनामियाँ
पत्थरों में भी होती हैं
कुछ ख़ूबियाँ रानाइयाँ
बुलबुलों की सदायें सुन
बहार- ए -चमन ग़ुरूर न कर !
गुज़रे हैं ज़माने पत्थरों पर चल चलकर !!
@रवीन्द्र सिंह यादव
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