एक शिल्पी है वक़्त
गढ़ता है दिन-रात
उकेरता अद्भुत नक़्क़ाशी
बिखेरता रंग लिये बहुरँगी कूची
पलछिन पहर हैं पाँखुरियाँ
बजतीं सुरीली बाँसुरियाँ
सृजित करता है
स्याह-उज्ज्वळ इतिहास
पल-पल परिवर्तित प्रकृति
घड़ियाँ करतीं परिहास
नसीम-सा गुज़रता है
हर्ष-विषाद के पड़ावों से
मरहम हो जाता है
आप्लावित होता है भावों से
उजलत मानव अभिलाषा
कोसती है वक़्त को
ख़ुद ठहरकर
सुबह-शाम
दोष देती वक़्त को
वक़्त की गर्दिश को
सीने से लगा लेते हैं हम
ठोकरें और थपेड़े वक़्त के
ज़ेहन में क्यों सजा लेते हैं हम ?
© रवीन्द्र सिंह यादव
उजलत = उतावली,व्यग्र
नसीम = जो दूसरों की सहायता करता हो
वक़्त की हाथों की कठपुतलियाँ सारे
जवाब देंहटाएंवही बुनता है सुख-दुःख के ताने बाने
थामकर डोर जीवन की मनमर्जियाँ चलाता है
कभी सीता है जख़्मों को कभी किर्चियाँ चुभाता है
बहुत सुंदर शब्दों की शानदार नक्काशी रवींद्र जी..खूबसूरत रचना..वाहहह।
आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है आदरणीया श्वेता जी. बहुत-बहुत आभार.
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/101.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आदरणीय राही जी रचना को मित्र-मंडली में शामिलकर विशिष्ट पाठक वर्ग तक पहुंचाने के लिये.
हटाएंवक़्त की गर्दिश को
जवाब देंहटाएंसीने से लगा लेते हैं हम
ठोकरें और थपेड़े वक़्त के
ज़ेहन में क्यों सजा लेते हैं हम ?
बहुत ही बेहतरीन रचना रवीन्द्र जी
सादर आभार आदरणीया अनुराधा जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये.
हटाएंवक्त ही देता रहा सौगातें
जवाब देंहटाएंवक्त ही लेता रहा इम्तिहान
थमा सा खडा था वक्त
हम गुजरते रहे दरमियाँ ।
सार्थक समय की बहती धारा सी प्रवाहमान रचना।
सादर आभार आपका कुसुम जी मोहक काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिये।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका यह शिल्पी इतना बेरहम क्यों है? वह इतना भेदभाव क्यों करता है?
जवाब देंहटाएंहम सब्र करें, वो ऐश करें?
वो क़त्ल करें, हम शव ढोएँ?
sundar rachna
जवाब देंहटाएंभाव तो मैं उतना समझ नहीं सका...लेकिन श्बदों का बेहतरीन प्रयोग किया है आपने।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहर्ष-विषाद के पड़ावों से ,मरहम हो जाता है
जवाब देंहटाएंयथार्त...... बहुत खूब...... सादर नमन
वक़्त की गर्दिश को
जवाब देंहटाएंसीने से लगा लेते हैं हम
ठोकरें और थपेड़े वक़्त के
ज़ेहन में क्यों सजा लेते हैं हम ?
बहुत सुन्दर, सार्थक एवं सटीक प्रस्तुति
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी