ख़ुशी आयी
ख़ुशी चली गयी
ख़ुशी आख़िर
ठहरती क्यों नहीं ?
आँख की चमक
मनमोहक हुई
कुछ देर के लिये
फिर वही
रूखा रुआँसापन
ग़म आता है
जगह बनाता है
ठहर जाता है
बेशर्मी से
ज़िन्दगी को
बोझिल बनाने
भारी क़दमों से
दुरूह सफ़र
तय करने के लिये
ख़ुशी और ग़म का
अभीष्ट अनुपात
तय करते-करते
एक जीवन बीत जाता है
अमृत-घट रीत जाता है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीया अभिलाषा जी उत्साहवर्धन के लिये.
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंरूखा रुआँसापन
ग़म आता है
जगह बनाता है
ठहर जाता है !!!! बहुत ख़ूब 👌
बहुत-बहुत आभार अनीता जी रचना पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये।
हटाएंख़ुशी और ग़म का
जवाब देंहटाएंअभीष्ट अनुपात
तय करते-करते
एक जीवन बीत जाता है
अमृत घट रीत जाता है।
बहुत सुन्दर...
जीवन खुशी और गम का तारतम्य ही तो है
बहुत लाजवाब
वाह!!!
सादर आभार आदरणीया सुधा जी रचना पर विश्लेषणात्मक टिप्पणी के लिये।
हटाएंखुशी और ग़म का
जवाब देंहटाएंअनुपात कैसे तय हो?
खुशी हल्की होकर
उड़ जाती है
झट से
पल भर में
वक़्त के पिंजरें से,
और,
ग़म का गाढ़ा मवाद
धीरे-धीरे
रिस-रिसकर
जमा हो जाता है
ज़िंदगी की खुली छिद्रों मे।
बेहद सराहनीय,वैचारिक मंथन....
बहुत सुंदर सृजन रवींद्र जी...👌
सादर आभार आदरणीया श्वेता जी रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया के ज़रिये मनोबल बढ़ाने के लिये।
हटाएंअनुपात, ख़ुशी और ग़म का, वह भी अभीष्ट! यहीं तो भ्रम पाश है . जितनी जल्दी जीवन के अमृत घट को लेकर इस दलदल से निकालें उतना बेहतर .
जवाब देंहटाएंवाह!!रविन्द्र जी ,बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंठहरता ना ग़म है न ख़ुशी न ही समय ..
जवाब देंहटाएंहम हैं रोक लेते हैं ग़म को और नहि आने देते अहोई ख़ुशी भी
अच्छी रचना है बहुत ही ...
ख़ुशी और ग़म का
जवाब देंहटाएंअभीष्ट अनुपात
तय करते-करते
एक जीवन बीत जाता है
अमृत घट रीत जाता है।
बेहद खूबसूरत सृजन ....,