वक़्त का विप्लव
सड़क पर प्रसव
राजधानी में
पथरीला ज़मीर
कराहती बेघर नारी
झेलती जनवरी की
सर्दी और प्रसव-पीर
प्रसवोपरांत
जच्चा-बच्चा
अट्ठारह घंटे तड़पे
शहरी सड़क पर
ज़माने से लड़ने
पहुँचाए गए
अस्पताल के बिस्तर पर
चिड़िया चहचहायी होगी
विकट विपदा देखकर
गाड़ियाँ और लोग
निकले होंगे मुँह फेरकर
हालात प्रतिकूल
फिर भी टूटीं नहीं
लड़खड़ातीं साँसें
करतीं रहीं
वक़्त से दो-दो हाथ
जिजीविषा की फाँसें
जब एनजीओ उठाते हैं
दीनहीन दारुण दशा का भार
तब बनता है
एक सनसनीखेज़ समाचार।
© रवीन्द्र सिंह यादव
नारी का दर्द,पुरुष की जुबानी आँखें बरस गई
जवाब देंहटाएंसादर
मर्मस्पर्शी सत्य!
जवाब देंहटाएंयही सच है ...मर गई मानवता .....बहुत मर्मस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंमनुजता विहीन समाज का मार्मिक चित्रण ,सादर नमन आप को और आप की लेखनी को
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बिल्कुल सत्य
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंकराहती बेघर नारी
झेलती जनवरी की
ठण्ड और प्रसव-पीर
दिल को झकझोरती मार्मिक एवं सटीक प्रस्तुति...
बहुत शर्मनाक बहुत दर्दनाक किन्तु कटु सत्य ! आज महा-प्राण निराला होते तो लिखते -
जवाब देंहटाएंवह जन्मतीं हैं शिशु, महानगरों की सड़कों पर,
कलंकित देश होता है, महानगरों की सड़कों पर !
यही सच है।
जवाब देंहटाएंशर्मनाक मानवता विहीन समाज का मार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर आपकी इस मर्मस्पर्शी रचना ने विह्वल कर दिया और ये संकेत भी दे दिया की इंसानियत अब अपाहिज हो चूकी है
जवाब देंहटाएंयथार्थ....
जवाब देंहटाएंलाजवाब आदरणीय।
बिल्कुल सत्य एवं सटीक।
जवाब देंहटाएंसंवेदनहीन होते समाज की मार्मिक तस्वीर आदरणीय रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंसनसनी का भूखा मीडिया और कर भी क्या सकता है ? गरीबी में
हालत से लड़ने की हिम्मत भी कुछ ज्यादा ही आ जाती है | सादर
निःशब्द !!!! दिल दहला देने वाली वास्तविक घटना पर आधारित रचना।
जवाब देंहटाएंसमाज का एक चेहरा यह भी है जो सत्य है।