महिलाओं के
प्रवेश के बाद
मन्दिर का
शुद्धिकरण !
समानता के
अधिकार से
ऊपर झूलता है
आस्था का
अँधानुकरण !!
भावनात्मक
तनाव-दोहन
कामयाबी का
सपाट शार्ट-कट!
है आसान
अज्ञानियों पर
रौब-शासन
भव्यता की आड़ में
ख़ज़ाना सफ़ा-चट!!
आस्था की जलावन
भावना के अलाव में
सरकायी हर बार!
रूढ़ियों / वर्जनाओं के
रूढ़ियों / वर्जनाओं के
तोड़कर बैरियर
बदलती सोच
अभिमान से
पहुँची उस पार!!
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत खूब.... आदरणीय
जवाब देंहटाएंयथार्थ
बहुत-बहुत आभार रवीन्द्र जी चर्चा में शामिल होने के लिये।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-11-2019) को ""हुआ बेसुरा आज तराना" (चर्चा अंक- 3511) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'