निर्माण न्यारे नीड़ का
नित-नित करती,
वह नन्ही चिड़िया
जोखिमभरी ज़िद करती।
बस्तियाँ ही बस्तियाँ हैं
तिनके अब
बहुत दूर-दूर मिलते,
वृक्ष रोपने निकले
आवारा राही के
नक़्श-ए-क़दम नहीं मिलते।
ख़ामोशियों में डूबी
चिड़िया उदास नहीं,
भले ही दरिया-ए-ग़म का
किनारा भी अब पास नहीं।
गुज़रना है ख़ामोशी से
ता-उम्र सब्र का साथ लिए,
फल की चिंता किए बग़ैर
कर्मरत है चिड़िया
ख़ुद से जीने का समझौता किए।
शजर की शाख़ पर
हालात से लड़कर
संजोया है प्यारा नशेमन
कुछ लम्हात के लिए,
हालात की आँधी में
पालना है पीढ़ी को
हो क़ाबिल ऊँची उड़ान के लिये।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही संवेदनशील सृजन !!!
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत उम्दा 👌 👌 👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअपनी जिम्मेवारियों को पूर्ण करने का साहस राहत हिया हमेशा उस नन्ही चिड़िया में ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
शजर की शाख़ पर
जवाब देंहटाएंसंजोया है प्यारा नशेमन,
पालना है पीढ़ी को
हो क़ाबिल ऊँची उड़ान के लिये।
भले चिड़िया चिड़िया है पर ममत्व से दूर कहाँ ? संतति के पालन पोषण का भर तो लेगी ही अपने सर | बेहद भावपूर्ण रचना रवीन्द्र जी | आपका मौलिक अंदाज इसे और विशेष बना देता है| सादर सस्नेह शुभकामनायें |
दिल में ख़लिश
जवाब देंहटाएंता-उम्र सब्र का साथ लिये,
गुज़रना है ख़ामोशी से
हाथ में हाथ लिये।
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन...