गुरुवार, 4 जून 2020

लॉकडाउन में गुलाब

आज 

एक अनमने ऊँघते उदास गुलाब को

ग़ौर से देखा

खिंची हुई थी 

भाल पर उसके 

चिंता की रेखा

सौंदर्यविहीन सूखी-सिकुड़ी सुमन पाँखें

अब झर जाने को हैं तत्पर

समय पर पड़ी नहीं नज़र 

कलियाँ फूल हुईं 

फूल खिले रहे किसी प्रतीक्षा में

ग़ाएब थी हलचल 

क़ैद थे फूलों में अर्थ ढूँढनेवाले 

गुलाब के फल 

पक जाने की राह पर हैं

लॉकडाउन के बाद 

फिर आने लगे हैं दीदा-वर 

चिर-प्रतीक्षित चमन में 

गुलाब के बीज 

मिल जाएँगे मिट्टी में 

अनुकूल माहौल में 

फिर उगेंगे, बढ़ेंगे; खिलेंगे  

नई उमंग-तरंग, तमन्नाओं के साथ 

नाज़ुक गुलाब के फूल की 

ख़ुशबू में तर हो 

रंगीन पंखुड़ियाँ 

फिर छुएगा कोई हाथ।  
  
© रवीन्द्र सिंह यादव         

6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
    "मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्मीदों के आंगन में फिर गुलाब खिलेंगे
    बढ़िया रचना सर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. लोकडाउन में गुलाब भी चिंता में डूबा
    वाह क्या सोच है

    सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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