गुरुवार, 25 जून 2020

इंसान को छोड़कर...

आम की फली हुईं 

अमराइयों में

कोयल का कुहू-कुहू स्वर 

आज भी 

उतना ही 

सुरीला सुनाई दे रहा है

मयूर भी 

अपने नृत्य की 

इंद्रधनुषी आभा से 

मन को मंत्रमुग्ध करता 

दिखाई दे रहा है

तितली-भंवरे 

मधुवन में 

अपने-अपने मंतव्य 

ढूँढ़ रहे हैं  

स्याह रात में 

झींगुर-मेंढक के स्वर 

गूँज रहे हैं 

जुगनू भी 

अँधेरे से लड़ते 

नज़र आ रहे हैं

उल्लू-चमगादड़ 

मुस्तैद मिशन पर 

रोज़ जा रहे हैं

रातरानी के सुमन 

मदमाती सुगंध 

बिखेर रहे हैं

मेंहदीं के झाड़ 

किसी की बाट हेर रहे हैं   

अंबर के आनन में 

मेघमालाएँ सज रहीं हैं  

कलियाँ-फूल और पत्तियाँ 

अपनी नियति के पथ पर 

सहज सज-धज रहीं हैं

पहली बारिश में  

नदी मटमैली होकर 

अपने तटबंधों को 

सचेत कर रही है

चंदा-सूरज की कालक्रम सूची

नियमित समय-पटल पर 

टंग रही है

हवा भी राहत की सांस लेकर 

मन रंग रही है  

एक इंसान है 

जो आशंकाओं से घिर गया है 

करोना-वायरस के मकड़जाल में 

फँस गया है

युवा-मन भविष्य की तस्वीर पर 

असमंजस से भर गया है 

अवसर की आस में 

थककर आक्रोश से भर गया है

कोई अपनी पगडंडियाँ बनाकर 

अनजान सफ़र पर चल पड़ा है

आत्मबल की पूँजी के सहारे

उतरना ही है अब मझदार में

कब तक चलेगा किनारे-किनारे? 

 © रवीन्द्र सिंह यादव

10 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
    (26-06-2020) को
    "सागर में से भर कर निर्मल जल को लाये हैं।" (चर्चा अंक-3744)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ जून २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बात तो सच है कोरोना के मकड़जाल ने यूँ घेर रखा है ना उससे बाहर निलते हो रहा है ना उसमे बंधे
    प्रभु से प्रार्थना है जल्दी से आज़ादी मिले इस मकड़जाल से

    अच्छी रचना हुई हैं
    बधाई

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  5. कोराना ने काम धंधे ठप्प जरूर किए हे मगर व्यक्ति अपनी मूल जड़ों में लौटा है

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर .
    सादर

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