बुधवार, 3 जून 2020

रंगभेद लील गया जॉर्ज फ़्लॉयड को

इंसानी रंगभेद 

इंसानी बुद्धि का नाजाएज़ फ़ितूर है 

बुद्धि का चरित्र 

विभाजन में भी विभाजन करना है 

इतना विभाजन 

कि वस्त्र का रेशा-रेशा 

पृथक-पृथक हो जाय 

ताकि इन्हें 

मन-मुताबिक़ तोड़ने-मोड़ने में

इच्छित ध्रुवीकरण होने में  

आसानी हो

सब कुछ 

उसके ख़याल के मुताबिक़ हो

नफ़रत का ताना-बाना 

ख़ेमा-बंदी का सूत्रधार हो 

कुछ लोग अपने आप को 

श्रेष्ठ सिद्ध करने में 

कामयाब हो गए हैं 

सभ्यता के विकास में 

व्यवस्था को हथियाने का नुस्ख़ा

विकसित / स्थापित करने में 

कामयाब हो गए हैं 

जो असंगठित थे

महान उद्देश्यों से बेख़बर / आलसी थे

भौतिकतावादी जीवन से बेअसर थे   

प्राकृतिक जीवन के पक्षधर थे 

वे चालाकी / धूर्तता में पिछड़ गए

अपने अंतरविरोधों में उलझ गए 


गौर-वर्ण या श्याम-वर्ण लेकर 

जन्मना व्यक्ति के वश में नहीं

भौगोलिक स्थितियाँ  

आवासीय परिस्थितियाँ

अनुवांशिक ख़ूबियाँ इत्यादि-इत्यादि  

आमतौर पर खाल का रंग 

तय करतीं हैं

सूरज की किरणें 

वैविध्य वरण करतीं हैं 


अमेरिका में व्यस्त सड़क पर 

हथकड़ी लगाकर 

मुँह के बल गिराकर 

अफ़्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक 

जॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन

घुटने से दबाता

क़रीब पौने 9 मिनट तक 

सरेआम तड़पाता  

मौत के मुहाने तक ले जाता 

अहंकारी बेरहम श्वेत-वर्णीय

पुलिस अधिकारी

दुनिया ने विस्मय से देखा

कमाल का  लोकतंत्र है अमेरिका 

जहाँ पुलिस-हत्याओं का रिकॉर्ड नहीं होता 

उस महिला की हिम्मत को सलाम 

जिसने वीडियो बनाते हुए 

बर्बरता को इतने नज़दीक से देखा  

फ़्लॉयड अब किस दुनिया में है 

किसी ने नहीं देखा 

फिलहाल भेदभाव की दुनिया 

हमेशा के लिए छोड़ गया 

मानवता पर काला धब्बा लग गया 

लेकिन अमेरिका में उठा 

नस्लीय श्रेष्ठता की 

दूषित मानसिकता के विरुद्ध 

रंगभेदी तूफ़ान बेक़ाबू हो उठा है

सभ्यता की सीढ़ियाँ चढ़ता समाज 

एक बार फिर बेनक़ाब हो गया है। 

© रवीन्द्र सिंह यादव       
    

1 टिप्पणी:

  1. अपने यहाँ का धर्म-भेद और जाति-भेद, उपजाति-भेद भी उतना ही ज़हरीला है ...

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