मोर तुम सुंदर हो,
मनमोहक हो,
मृदुल कंठ निराला शबाब है,
तुम्हारा नृत्य तो लाजवाब है,
तुम साँप खाते हो...
फिर भी ज़हरीले नहीं!
बोलो कोई जवाब है?
©रवीन्द्र सिंह यादव
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