जागती है
रोज़ सुबह
एक तितली,
बाग़ में खिले
फूलों-कलियों से
है बाअदब मिलती।
खिले रहो
यों ही
संसार को देने
आशाओं का सवेरा,
मुस्कराकर
अपना दर्द छिपाये
फूलों-कलियों में
दिनभर है करती बसेरा।
फूलों से कहती है -
तुम्हारी
कोमल पंखुड़ियों के
सुर्ख़ रंग
केवल मुझे
ही नहीं लुभाते हैं,
मधुर रसमय राग
जीवन संगीत का
ये सबको सुनाते हैं।
फूल तुम
यों ही
खिले रहना,
मदमाती
ख़ुशबू से
कल सुबह तक ...
यों ही
महकते रहना।
अनमना होता है
फूल उस पल
वक़्त आ खड़ा
होता है जब
मुरझाने की
नियति का
सवाल होकर ,
कलियाँ
कल तुम्हारा हैं
बीज परसों तुम्हारे हैं
कहती मूक तितली
फूल से वाचाल होकर।
कल फिर मैं आऊँगी
तुम इंतज़ार करना,
सब्र के साथ
अँधेरी रात पार करना।
@रवीन्द्र सिंह यादव
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