शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

चाँद पूनम का


कभी भूलती नहीं ये लगती बड़ी सुहानी,
चंदा सुनेगा आज फिर मेरी वही कहानी।
दोहराता है ये मन
है अजीब-सी लगन
पूनम की रात आयी
नूर-ए-चश्म लायी
हसीं चंदा ने 
बसुंधरा पर 
धवल चाँदनी बिखरायी 
चमन-चमन खिला था
 मौसम-ए-बहार  का 
प्यारा-सा सिलसिला था
कली-कली पर शोख़ियाँ 
और शबाब ग़ज़ब खिला था
 एक सरल  सुकुमार कली से 
आवारा यायावर भ्रमर मनुहार से मिला था
हवा का रुख़ प्यारा बहुत नरम था
दिशाओं का न कोई अब भरम था  
राग-द्वेष भूले
बहार में सब झूले 
फ़ज़ाओं में भीनी महकार थी 
दिलों में एकाकार की पुकार थी  
शहनाइयों की धुन कानों में बज रही थी
चाह-ए-इज़हार  बार-बार मचल रही थी
ज़ुल्फ़-ए-चाँद को संवारा
कहा दिल का हाल सारा
नज़र उठाकर उसने देखा था 
चंदा को आसमान में
लगा था जैसे रह गया हो 
उलझकर तीर एक कमान में 
 फिर झुकी नज़र से उसने 
घास के पत्ते को था सहलाया
छलक पड़े थे आँसू 
ख़ुद को बहुत रुलाया
इक़रार पर अब यकीं था आया
था इश्क़ का बढ़ चला सरमाया
नज़रें  मिलीं तो  पाया
चाँद को ढक  रही  थी
बदली की घनी छाया
पानी में दिख रही थी 
        लरज़ते चाँद की प्रतिछाया... 
नील गगन में चंदा आयेगा बार-बार  
 शिकवे-गिले सुनेगा आशिक़ों की ज़ुबानी,
चंदा सुनेगा आज फिर मेरी वही कहानी।

#रवीन्द्र सिंह यादव  

इस रचना को सस्वर सुनने के लिए YouTube Link-
https://youtu.be/7aBVofXYnN0

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-01-2020) को   "मैं भारत हूँ"   (चर्चा अंक - 3581)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --मकर संक्रान्ति की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूब !
    प्रगतिशील कवि फिर से रूमानी चाँद की तरफ़ मुड़ चला !

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

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