छाया बसंत
है बसंत-बहार
मुदित जिया
महका बाग़
चहकी कली-कली
कूकी कोयल
फूली पीली सरसों
हँसे किसान
मस्त फ़ज़ाऐं
गुनगुनी है धूप
हरे शजर
ढाक-पलाश
सुर्ख़ हुआ जंगल
महके फूल
खिला बाग़ीचा
फूलों पे चढ़ा रंग
रंगी है भोर
दिल की लगी
यक़ीं-वफ़ा के गीत
भाये मन को
सूनी है साँझ
चंदा चुपचाप क्यों
रोया चकोर
बुझते दिये
मायूसियों के साये
आ जाओ पिया
# रवीन्द्र सिंह यादव
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