सुदूर पर्वत पर
बर्फ़ पिघलेगी
प्राचीनकाल से बहती
निर्मल नदिया में बहेगी
अच्छे दिन की
बाट जोहते
किसान के लिए
सौग़ात बन जायेगी
प्यासे जानवरों का
गला तर करेगी
भोले पंछियों की
जलक्रीड़ा में
विस्तार करेगी
भोले पंछियों की
जलक्रीड़ा में
विस्तार करेगी
लू के थपेड़ों की तासीर
ख़ुशनुमा करेगी
एक प्यासा बूढ़ा
अकड़ी अंजुरी में
अकड़ी अंजुरी में
भर पी जायेगा
जब बर्फ़ीला पानी
निकलेगी एक आह
कहते हुए -
आ रही है
मज़लूम बर्फ़
रिहा होकर
ज़ालिम के हाथ से
जा रही है
विलय होने
विलय होने
नदिया समुन्दर में
अपना अस्तित्व खोने !
बदलते रहेंगे मौसम
फिर-फिर जमेगी बर्फ़
सजते रहेंगे ख़्यालात
हर्फ़-दर-हर्फ़..!!
बदलते रहेंगे मौसम
फिर-फिर जमेगी बर्फ़
सजते रहेंगे ख़्यालात
हर्फ़-दर-हर्फ़..!!
#रवीन्द्र सिंह यादव
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