शुक्रवार, 9 मार्च 2018

मूर्ति

सोचता हूँ 
गढ़ दूँ 
मैं भी अपनी 
मिट्टी की मूर्ति, 
ताकि होती रहे 
मेरे अहंकारी-सुख की क्षतिपूर्ति। 

मिट्टी-पानी का अनुपात 
अभी तय नहीं हो पाया है, 
कभी मिट्टी कम 
तो कभी पर्याप्त पानी न मिल पाया है। 

जिस दिन मिट्टी-पानी का 
अनुपात तय हो जायेगा, 
एक सुगढ़ निष्प्राण 
शरीर उभर आयेगा। 

कोई क़द्र-दां  ख़रीदार भी होगा 
रखेगा सहेजकर, 
जहाँ पहुँचता न हो  दम्भी हथौड़ा 
मूर्तिभंजक नफ़रत का घूँट पीकर ..!   
#रवीन्द्र सिंह यादव 

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