मन में
दशकों से
दबे हुए
दशकों से
दबे हुए
क्रोध को
आजकल
सडकों पर
सडकों पर
भीड़ बनकर
चाहतों के शहर
ख़्वाबों की गलियाँ
चाहतों के शहर
ख़्वाबों की गलियाँ
विध्वंस करते हुए
निकाला जा रहा है।
मनुष्य को ईश्वर ने
औरों की पीड़ा महसूसने
ज़मीर को जाग्रत रखने.....
दिल दिया
समझने सांसारिक-खेल
जीवन को बेहतर बनाने
दिमाग़ भी दे दिया
फिर क्यों रख देता है
मनुष्य
अपना दिल-ओ-दिमाग़
गिरवी
किसी धूर्त की चौखट पर.....?
और पलभर में
तत्पर हो जाता है
अराजक दंगाई बनने।
आम लोग होते हैं तबाह
किसी की होती है पौ-बारह
घायलों, पीड़ितों की चीत्कार
आम लोग होते हैं तबाह
किसी की होती है पौ-बारह
घायलों, पीड़ितों की चीत्कार
दिल की सूनी कोठरी में
कभी तो सुनाई देगी
तब तक
बहुत देर हो चुकी होगी......!
# रवीन्द्र सिंह यादव
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