चित्र साभार : दैनिक भास्कर
शायरों, कवियों की कल्पना में
होता था काँटों वाला बिस्तर,
चंगों ने बना दिया है अब
भाले-सी कीलों वाला
रूह कंपाने वाला बिस्तर।
अँग्रेज़ीदां लोगों ने इसे
ANTI HOMELESS IRON SPIKES कहा है,
ग़रीबों ने अमीरों की दुत्कार को
ज़माना-दर-ज़माना सहजता से सहा है।
महानगर मुम्बई में
होता था काँटों वाला बिस्तर,
चंगों ने बना दिया है अब
भाले-सी कीलों वाला
रूह कंपाने वाला बिस्तर।
अँग्रेज़ीदां लोगों ने इसे
ANTI HOMELESS IRON SPIKES कहा है,
ग़रीबों ने अमीरों की दुत्कार को
ज़माना-दर-ज़माना सहजता से सहा है।
महानगर मुम्बई में
एक निजी बैंक के बाहर
ख़ाली पड़े फ़र्श को
पाट दिया गया
लम्बी लोहे की
नुकीली कीलों से
नुकीली कीलों से
बनवाया गया
कीलों वाला बिस्तर,
ताकि बेघर रात को
न सो पायें
हो जायें छू-मंतर ।
गन्दगी गलबहियाँ ग़रीबों के डालती है,
विपन्नों से दूरी और घृणा अमीरी स्वभावतः पालती है।
निजी बैंक
अमीर ग्राहक के स्वागत में
रेड कारपेट बिछाते हैं,
दीन-हीन व्यक्ति के प्रति जीभर के
संवेदनशून्यता छलकाते हैं।
नमन उस जज़्बाती इंसान को
जो मुद्दे को
सोशल मीडिया में लाया,
सोशल मीडिया में लाया,
शर्मिंदगी झेलकर बैंक ने
कीलों वाला फ़्रेम हटवाया।
मुख्यधारा मीडिया भी
अपनी मानसिकता पर ज़रा शर्माया
नुकीला बिस्तर बनने का न सही
हटने का समाचार तो लाया।
ज़रा सोचिये
कोई अमीर भी
फिसलकर
डगमगाकर
इन कीलों पर गिर सकता था......... !
ज़रा सोचिये
कोई अमीर भी
फिसलकर
डगमगाकर
इन कीलों पर गिर सकता था......... !
#रवीन्द्र सिंह यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी का स्वागत है.