विधा- कविता (काव्य संग्रह )
कवि - ध्रुव सिंह "एकलव्य"
प्रकाशक- प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ
ISBN-10: 9387856763
ISBN-13: 978-9387856769
ASIN: B07BHSKXSR
ISBN-10: 9387856763
ISBN-13: 978-9387856769
ASIN: B07BHSKXSR
मूल्य - 110 रुपये
पृष्ठ संख्या - 102
पृष्ठ संख्या - 102
बाइंडिंग - पेपरबैक
भाषा - हिन्दी
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सामाजिक चेतना के मुखर कवि ध्रुव सिंह "एकलव्य" जी का प्रथम काव्य संग्रह "चीख़ती आवाज़ें" हाथ में आया। सर्वप्रथम ध्रुव जी को प्रथम काव्य संग्रह के प्रकाशन पर बधाई। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक है। मुखपृष्ठ पर चीख़ती आवाज़ों का रेखांकन अर्थपूर्ण है। पुस्तक का शब्द-शिल्प क़ाबिल-ए-तारीफ़ है जो कवि का यथार्थवादी एवं प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण उभारने में सक्षम रहा है।
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पुस्तक में आरम्भ से अंत तक बिषयक गंभीरता का प्राधान्य है। ध्रुव जी एक कवि होने के साथ-साथ कुशल व्यंगकार, कहानीकार,चित्रकार एवं नाट्य कलाकार भी हैं। जब एक कलाकार में विद्रोह का स्वर मुखरित होता है तो सम्वेदना की मख़मली ज़मीन पर सुकोमल एहसास जीवन को रसमय बनाते हैं और पात्र जीवंत हो उठते हैं।
कविता "अनुत्तरित" में असहाय,लावारिस जीवन की विवशताओं और लाचारी की झलक कवि के शब्दों में -
"मार दिए थे उसने
दो झापड़,
लावारिस हूँ
कहके।
एक चीख़ती आवाज़
चीरने लगी थी
प्लेटफार्म पर पसरे
सन्नाटे को।"
"ख़त्म होंगी मंज़िलें" कविता में आज के सुलगते हुए सवाल की आँच हमें भी झुलसाती है -
"मंज़िलों पर मंज़िलें
मंज़िलों के वास्ते
फुटपाथ पर पड़े हम
ज्ञात नहीं
कब आयेंगी ?
वे मंज़िलें
चप्पल उतारकर ,धुले हुए
क़दमों को आराम दूँगा !"
किसान को अपनी लहलहाती फ़सल से अगाध प्रेम होता है जिसे वह अपनी औलाद की भांति स्नेह करता है। एक रचना फ़सल का मानवीकरण करती हुई -
रिश्तों में गुथे हुए समाज की बिडम्बनाएं कवि को विचलित करती हैं और दर्द उभर आता है लेखनी में -
बेघर और जीवन की मूलभूत सुबिधाओं से वंचित व्यक्ति के भीतर भी स्वाभिमान पनपता है -
नारी स्वतंत्रता,शिक्षा और सशक्तिकरण भले ही आज के सर्वाधिक चर्चित जुमले हों किन्तु ग़ौर कीजिये कवि की नज़र कहाँ ठहर गयी है -
यौवन आने तक।"
ग़ुर्बत में जीने वालों की ज़िन्दगी खटमल को भी सुबिधा और सहूलियत वाली सिद्ध होती है। खटमल को अपना शिकार तलाशने के लिए ज़्यादा श्रम नहीं करना पड़ता। कविता "खटमल का दर्द" सामाजिक असमानता के विकराल स्वरुप पर धारदार कटाक्ष करती है -
फ़ुटपाथ के !"
स्त्री जीवन की विवशताओं को कवि का संवेदनशील ह्रदय कुछ इस प्रकार बयां करता है-
इच्छायें उड़ानों की ऊँची
वो प्यासी आज भी है।
किसान को अपनी लहलहाती फ़सल से अगाध प्रेम होता है जिसे वह अपनी औलाद की भांति स्नेह करता है। एक रचना फ़सल का मानवीकरण करती हुई -
"मौसमों के प्यार ने बड़ी ज़्यादती की
लिटा दिया
मेरे अधपके बच्चों को
खेतों में मेरे"रिश्तों में गुथे हुए समाज की बिडम्बनाएं कवि को विचलित करती हैं और दर्द उभर आता है लेखनी में -
"बिना खाए सो गई
फिर आज
फिर आज
'मुनिया' नन्हीं हमारी
चलो ! मेरी क़िस्मत ही फूटी"बेघर और जीवन की मूलभूत सुबिधाओं से वंचित व्यक्ति के भीतर भी स्वाभिमान पनपता है -
"ख़्याल रखना !
उस नीम का
नवाब साहब के आँगन में
लगा है।"नवाब साहब के आँगन में
नारी स्वतंत्रता,शिक्षा और सशक्तिकरण भले ही आज के सर्वाधिक चर्चित जुमले हों किन्तु ग़ौर कीजिये कवि की नज़र कहाँ ठहर गयी है -
"वो घर था !
एक खूँटी से बंधी थी
ड्योढ़ी की सीमा
खींच दी कहकर
मेरी लक्ष्मण रेखा
ग़ुर्बत में जीने वालों की ज़िन्दगी खटमल को भी सुबिधा और सहूलियत वाली सिद्ध होती है। खटमल को अपना शिकार तलाशने के लिए ज़्यादा श्रम नहीं करना पड़ता। कविता "खटमल का दर्द" सामाजिक असमानता के विकराल स्वरुप पर धारदार कटाक्ष करती है -
"खटमल को शायद
आदमी पसंद हैं
और वो भी
स्त्री जीवन की विवशताओं को कवि का संवेदनशील ह्रदय कुछ इस प्रकार बयां करता है-
इच्छायें उड़ानों की ऊँची
बुनती हुई
सूख चले नेत्रों में
कंपित होठों पर
गुम हुई
आवाज़ भी है
ग्रामीण जीवन की झांकी प्रस्तुत करती एक रचना में वात्सल्य और ममता से भरा एक माँ का आँचल कितना विशाल होता है। कवि के शब्दों में -
जुगाड़ में।
प्रसन्न थे हम दिन-प्रतिदिन
खो रही थी वो
हमें प्रसन्न रखने के
प्रस्तुत संग्रह की रचनाओं में कवि ने आँचलिकता को उभरने का भरपूर मौक़ा दिया है। ग्रामीण जीवन के आरोह-अवरोह कवि ने बड़ी शिद्दत के साथ उभारे हैं। विवशता और लाचारी के गंवई पात्र "बुधिया" के माध्यम से कवि ने सामाजिक मूल्यों के ह्रास पर प्रभावशाली हस्तक्षेप किया है-
समग्र दृष्टि में संग्रह की समस्त रचनाऐं "चीख़ती आवाज़ें" शीर्षक को असरदार बनाती हुई कवि के सटीक चिंतन की प्रतिनिधि रचनाऐं हैं।
कवि ध्रुव सिंह "एकलव्य" जी का शब्दशिल्प अपने आप में अनौखा है जिसमें मौलिकता सहज ही छलक पड़ती है। रचनाओं में जिन पात्रों का चयन किया गया है वे हमें रोज़मर्रा के जीवन में कहीं न कहीं टकरा ही जाते हैं। कवि का मानवीय दृष्टिकोण करुणा से ओतप्रोत है जो समाज के समक्ष विनीत भाव से आग्रह करता है कि ये आवाज़ें अब अनसुनी न की जायें बल्कि इनमें बसी पीड़ा और मर्म को महसूस किया जाय और इन्हें उबारने का मार्ग प्रशस्त किया जाय।
मेहनत बिन
ले जायेंगे हमको
हाथों से हमारे
पालनहार के
जिसे हम 'बुधिया'
बाबा कहते हैं। समग्र दृष्टि में संग्रह की समस्त रचनाऐं "चीख़ती आवाज़ें" शीर्षक को असरदार बनाती हुई कवि के सटीक चिंतन की प्रतिनिधि रचनाऐं हैं।
कवि ध्रुव सिंह "एकलव्य" जी का शब्दशिल्प अपने आप में अनौखा है जिसमें मौलिकता सहज ही छलक पड़ती है। रचनाओं में जिन पात्रों का चयन किया गया है वे हमें रोज़मर्रा के जीवन में कहीं न कहीं टकरा ही जाते हैं। कवि का मानवीय दृष्टिकोण करुणा से ओतप्रोत है जो समाज के समक्ष विनीत भाव से आग्रह करता है कि ये आवाज़ें अब अनसुनी न की जायें बल्कि इनमें बसी पीड़ा और मर्म को महसूस किया जाय और इन्हें उबारने का मार्ग प्रशस्त किया जाय।
सभी रचनाओं का उल्लेख संक्षिप्त समीक्षा में हो पाना मुश्किल होता है। 42 कविताओं के इस संग्रह में भाषा के प्रति कवि की सजगता स्पष्ट झलकती है। कविताओं में तत्सम,तद्भव, विदेशज, आंचलिक, स्थानीय एवं उर्दू शब्दों का प्रयोग काव्य की व्यापकता एवं ख़ूबसूरती में वृद्धि करता हुआ सटीक बन पड़ा है। अधिकांश कविताऐं मुक्त छंद में लिपिबद्ध हैं।
समाज का उपेक्षित तबका आये दिन हमारे समक्ष दुरूह चुनौतियों का सामना करता है। किसान, मज़दूर, स्त्री के विविध रूप, भिखारी, वैश्या, सपेरा,सब्ज़ीवाली, मेहनत-कश कामगार,बेघर आदि की आवाज़ को मर्मस्पर्शी लहज़े में शब्दांकित करती है पुस्तक "चीख़ती आवाज़ें"।
कवि का प्रगतिशील एवं प्रयोगवादी दृष्टिकोण और तेवर कविताओं में बख़ूबी झलकता है। एक उभरते कवि ने अपना परिचय सामाजिक मूल्यों की सार्थक चर्चा के साथ दिया है। ध्रुव जी को पुस्तक की सफलता हेतु एवं उज्जवल भविष्य की मंगलकामनाऐं। हम उम्मीद करते हैं ध्रुव जी अपनी धारदार लेखनी से साहित्य क्षेत्र में भरपूर योगदान करते रहेंगे।साहित्याकाश में ध्रुव तारे की भांति चमकते रहें।
- रवीन्द्र सिंह यादव
7 अप्रैल 2018
नई दिल्ली / इटावा
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