सोमवार, 30 जुलाई 2018

बारिश के रंग (पाँच ताँका)


हटाओ फूल

जो बने प्लास्टिक से

देखो बगिया,

आ गया है सावन

ज़ख़्मों का मरहम। 



आये उमड़

मेघदूत नभ में

लाये सन्देश,

शोख़ लफ़्ज़ सुनने

थी सजनी बे-सब्र।


पवन चली

खुल गयी खिड़की

फुहार आयी,

भिगोया तन-मन

बारिश में अगन।



मेघ मल्हार 

साथ आयी बहार 

बोले पपीहा,

 है घटा घनघोर

नाचे झूम के मोर।


नदी उफनी

हुई है मटमैली

फैले किनारे,

बहते हैं सपने

बिछड़ते अपने।

                                      © रवीन्द्र सिंह यादव



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणी का स्वागत है.

विशिष्ट पोस्ट

अभिभूत

बालू की भीत बनाने वालो  अब मिट्टी की दीवार बना लो संकट संमुख देख  उन्मुख हो  संघर्ष से विमुख हो गए हो  अभिभूत शिथिल काया ले  निर्मल नीरव निर...