हटाओ फूल
जो बने प्लास्टिक से
देखो बगिया,
आ गया है सावन
ज़ख़्मों का मरहम।
आये उमड़
मेघदूत नभ में
लाये सन्देश,
शोख़ लफ़्ज़ सुनने
थी सजनी बे-सब्र।
पवन चली
खुल गयी खिड़की
फुहार आयी,
भिगोया तन-मन
बारिश में अगन।
मेघ मल्हार
साथ आयी बहार
बोले पपीहा,
है घटा घनघोर
नाचे झूम के मोर।
नदी उफनी
हुई है मटमैली
फैले किनारे,
बहते हैं सपने
बिछड़ते अपने।
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